डॉ . नीरू मोहन ' वागीश्वरी
कला साहित्य

कविता: बहिष्कार… कोरोना वापिस जाओ

सरताजों का ताज कोरोना
फैले छूकर हाथ कोरोना।
छींक पे भी है इसका ज़ोर
खांसी बन गई इसकी दोस्त।

जिसको ये (कोरोना) छू जाता है
घर का वह हो जाता है।
दूर भागते देखके इसको
दूर भगाओ कहते इसको।

नहीं नज़दीक अब जाना है (किसी भी जन के)
नजदीकी चाहे रिश्ता उससे।
पास – पड़ोस कम किया है इसने
रोना पूरा डाला इसने।

चीन में पनपा इटली पहुंचा
घूम देश सब आया है।
भारत में पहुंचा है अब यह
भय इसने फैलाया है।

भय इसका इतना फैला है
हग (गले मिलना) भी कोई नहीं करता है।
हाथ मिलाना हुआ ख़त्म है
हाथ जोड़कर हाय ! हेलो! है।

इसके भय से स्कूल भी बंद हैं
कारोबार सभी के ठप हैं।
खोमचे वाले परेशान हैं
मंदी में अब पूरा जग है।

चर्चा में सरताज कोरोना
खबरों में बस इसका होना।
बूढ़ा, बच्चा, नेता, अफ़सर
बोले अब तुम जाओ कोरोना।

डरना नहीं है इससे हमको
लड़ना होगा इससे हमको।
साफ सफाई रखनी होगी
स्वच्छता हमें बरतनी होगी।

मुंह पर मास्क लगाना होगा
सबको यह बतलाना होगा।
हाथों को धोना बार – बार है
साबुन को रखना अपने पास है ।

ठेंगा इसे दिखाना है
बच्चा अब बन जाना है।
कोरोना के इस नए भूत को
जड़ से हमें मिटाना है।

जन – जन में जारी जागरूकता संदेश

(डॉ . नीरू मोहन ‘ वागीश्वरी)

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