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नए धंधो को जन्म देता प्रदूषण

एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 तक एयर प्युरिफायर का धंधा 250 करोड़ रुपयों से भी ज़्यादा का हो जाएगा और यहां सरकार अब तक 121 करोड़ से ज़्यादा जनसंख्या वाले देश के लोगों को ठीक से साफ हवा भी नहीं दे पाई। यह विडम्बना है, कि प्रदूषण को कैसे ख़त्म किया जाए इस पर चर्चा और नीतियां कुछ खास नहीं है पर धंधा तो लगातार हो रहा है।

प्रतीक वागमरे

आप यह सोच सकते है की प्रदूषण के कारण एक व्यापार या किसी बड़े उद्योग को नुकसान हो सकता है, लेकिन हम बात कर रहे है एक ऐसे व्यापार की जिसका धंधा प्रदूषण बढ़ने के साथ बढ़ गया है। जी हां, एयर प्युरिफायर। एक ऐसी मशीन जो ज़हरीली हवा को फिल्टर कर शुद्ध बना देती है, इसकी और भी ख़ासियत है जैसे यह मशीन ढ़ीली जेब वालों के बजट से कोसों दूर है।

सरकार ने प्रदूषण को लेकर अपना काम ज़िम्मेदारी से तो नहीं निभाया लेकिन बाज़ार ने अपना काम निकाल लिया हैं, इस बाज़ार ने तुरंत ही आपको एक महंगा विकल्प बना कर दे दिया और सरकार केवल राष्ट्रवाद पर भाषण देते रह गई, ख़ैर अब जा कर किसी घोषणा पत्र तो किसी संकल्प पत्र में प्रदूषण को जगह मिली है। वैसे इन पत्रों में राम मंदिर के मामले को 1996वें से जगह मिली हुई है लेकिन दो दशकों से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी राम लला को अयोध्या में ज़मीन नहीं मिल सकी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 तक एयर प्युरिफायर का धंधा 250 करोड़ रुपयों से भी ज़्यादा का हो जाएगा और यहां सरकार अब तक 121 करोड़ से ज़्यादा जनसंख्या वाले देश के लोगों को ठीक से साफ हवा भी नहीं दे पाई। यह विडम्बना है, कि प्रदूषण को कैसे ख़त्म किया जाए इस पर चर्चा और नीतियां कुछ खास नहीं है पर धंधा तो लगातार हो रहा है उदाहरण के रूप में भारत के कई हिस्सों में जन्म लेता ई-रिक्शा। बाज़ार तो बड़ा ही अवसरवाद है, (जो सरकार की खराब या फेल नीतियों के चलते ज्यादा पैदा होता है।) वो प्रदूषण पर सरकार का रवैया समझ चुका है यहां तक की सरकार ने भी ई-रिक्शा को बाकायदा स्टेंड-अप इंडिया योजना के तहत लांच किया है… बढ़ते प्रदूषण पर सरकार अपनी योजना में ऐसी गाड़ियों को लांच कर जश्न मना रही है और अपनी पीठ थप थापा रही है जबकि व्यापारी/उद्योगपति अपने प्रोडक्ट को लांच कर जश्न मना रहे है।

यह तो हुई स्डेंड-अप इण्डिया की बात, अब स्टार्टप्स की बात करते है, स्टार्ट-अप भी पीछे नहीं है वह भी वायु प्रदूषण पर नाकाम सरकार को समझ चुके है और ख़राब हवा से बाज़ार में कैसे पैसा कमाया जाए यह भी समझ चुके है। गूगल करने पर आप दिल्ली में ऐसे कई सारे स्टार्ट-अप्स की जानकारियां ले सकते है कोई 5 हज़ार से 25 हज़ार के एयर प्युरिफायर को सस्ता बता कर बेच रहा है, कोई नॉन-इलेक्ट्रिक यानी बिना बिजली का एयर प्युरिफायर बेच रहा है, कोई पोरटेबल एयर प्युरिफायर बेच रहा है तो कोई कार में लगाने के लिए तो कोई मिनि एयर प्युरिफायर बेच रहा है। मतलब साफ है दूषित हवा-पानी को स्वच्छ बनाने के लिए कोई दो-तीन फेल आइडियाज़ है लेकिन दूषित हवा-पानी से टेम्प्ररी बचने के लिए अनगिनत आईडियाज़ है।

बढ़ते बाज़ार की इतनी आलोचना इसलिए की जा रही है क्योंकि एक तो प्रदूषण को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे, दूसरी तरफ इस प्रदूषण से टेम्प्ररी बचने के लिए जो बाज़ार आपको विकल्प बेच रहा है उसका धंधा सेंकड़ों करोड़ के पार होते जा रहा है- इतने बड़े स्तर पर बढ़ता व्यापार यह सीधा संदेश देता है कि प्रदूषण को कम करने में हमारी सरकार पूरी तरह से विफल हैं।

प्रदूषण से निपटने के लिए अब स्वयं को आगे आना पड़ेगा, पर्यावरण के प्रति सहयोग देना पड़ेगा, और लोकतंत्र में सच्चे नागरिक होने के फर्ज़ को अदा कर सरकार से पूछना पड़ेगा की हमने आपको शुद्ध हवा-पानी के लिए जो टेक्स दिया है उसको भी क्या आपने दूषित कर दिया है?

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2 comments

Abhijit Gurav April 14, 2019 at 4:48 pm

Truth and reality..

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Abhijit Gurav April 14, 2019 at 4:51 pm

आँख खोलनेवाली जानकारी।

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