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“समाज सेवक”- एक शब्द, जो नतीजा है सरकार की विफलता का- अनूप खन्ना

दिल्ली-एनसीआर के व्यस्त माहौल, भागती दौड़ती जिंदगी के बीच जहां पानी से लेकर स्वच्छ हवा तक मंहगे दामों पर बिक रही है। वहां दादी की रसोई आज भी सिर्फ 5 रुपए में लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध करा रही है। उसमें भी स्वाद और गुणवत्ता के साथ कोई समझौता मंजूर नहीं है।
प्रतीक वाघमारे

दादी की रसोई का मकसद है सस्ते दाम पर जरूरत मंद लोगों को पौष्टिक खाना उपलब्ध कराना। ऐसा कहना है इसके संस्थापक अनूप खन्ना का। अनूप का मानना है कि ऐसे ही छोटे-छोटे कदमों से समाज में बड़े-बड़े बदलाव आ सकते हैं।

अनूप ने अपने इस छोटे से कदम से न जाने कितने जरूरतमंदों का पेट भरा है और न जाने कितने ही लोगों को ऐसे नेकी के काम करने की प्रेरणा दी है। उनका एक ही मकसद है हर व्यक्ति को बुनियादी ज़रीरत जैसे रोटी, कपड़ा और दवा उपलब्ध कराना।

समाज सेवक का होना, सरकार की विफलता है

वे मानते है कि सरकार पुरी तरह से विफल है इसलिए उनके जैसे अनेकों को समाज के लिए काम करना पड़ रहा है, सरकार योजनाएं तो लाती हैं लेकिन वो योजनाएं कतार में खड़े अंतिम व्यक्तितक नहीं पहुंच पाती और वे कतार में खड़े हर उस व्यक्ति को अपनी सेवा देना चाहते है।

दादी की रसोई की पहुंच अब दूर-दूर तक

‘दादी की रसोई’ का यह शानदार मॉडल अब धीरे-धीरे देश के कोने-कोने तक पहुंच रहा है, अनूप ने बताया की

यह मॉडल कई लोग अपना रहे। कुछ लोग हफ्ते में दो दिन खाना खिलाते है, कुछ लोग महीने में दो दिन कर रहे है, यहां तक की राष्ट्रपति भवन से भी उन्हें बुलावा आया और इसे हर जगह लागू करने के लिए इस पर खाका तैयार करने को कहा गया।

कम संसाधनों में भी अच्छा खाना

अनूप ने बताया इस काम को करने में मुश्किलें तो आती है साथ यह पूछे जाने पर कि इतने कम संसाधनों में आप कैसे प्रबंधन करते है उन्होंने बताया कि ‘संसाधन कम तो है पर इंसानियत अभी बची है और कई लोग मुझे सहायता प्रदान कर देते है जिस वजह से यह नेक काम तेजी से हो रहा है।’

पौष्टिक खाने के साथ अनुशासन पर भी ध्यान

अनूप ने बाहर के देशों की तारीफ करते हुए कहा कि ‘वहां लोग काफी अनुशासन से रहते है, उन्हें नियम-कायदे की समझ होती है और वे उनका पालन भी करते है लेकिन भारत में लोग कम पढ़े-लिखे होने के कारण नियम-कायदे न तो समझते है और उनका पालन करना तो दूर की बात है और इसीलिए यहां दादी की रसोई में जब लोग खाना लेने आते तो उन्हें लाईन में लगना और भी कई सारी अनुशासन की चीज़े सिखाई जाती है।

फ्री में भी खिलाते है खाना

अनूप ने हमसे बातचीत में बताया कि यहां हर वर्ग के लोग खाना खाने आते है जैसे ऑटो-चालक, मजदूर वर्ग के लोग, आदी। साथ ही विकलांग लोग भी आते है उन्हें वह मुफ्त में खाना खिलाते है, अभी चुनावी मौसम में भी उन्होंने एक ऑफर रखा है जिसके तहत अगर आप वोट डाल कर आते है तो आपके लिए खाना मुफ्त हो जाएगा जिससे की वह वोट करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहे है।

अनूप कहते है कि उनकी तारीफ करने वाले छत्तीस लोग है लेकिन उनके काम से प्रेरणा लेकर कर उसे करने वाले गिने चुने, वे गृहणियों को भी यह काम करने के लिए प्रेरित कर रहे है।

युवोओं को संदेश

अनूप का आज के युवाओं के लिए यह संदेश है कि फिलहाल के लिए वे अपने करियर को बनाए लेकिन अपने आने वाले जीवन में समाज सेवा ज़रूर करें और अपने सारे सपने पूरे करें।

हालांकि अनूप का भी एक सपना अभी अधूरा है। अनूप की धुंधलाती आंखों में जो नया सपना पल रहा है वो पर्यावरण को समर्पित है, उनका नया मॉडल यह है कि हर दुकानदार अपनी दुकान के अंदर और बाहर छोटे गमलों में पौधे लगाकर हरित क्रंति की दिशा में अपना कदम बढ़ाए।

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