बढ़ती महंगाई आज देशभर के लिए एक बड़ा मुद्दा है खासकर मेट्रोपॉलिटन राज्यों जैसे दिल्ली मुंबई इत्यादि. वैसे तो आधुनिक समय में रुपए की कीमत के साथ-साथ इंसानी जीवन का मोल भी खत्म हो गया है. आज हर व्यक्ति एक अंजानी दौड़ का हिस्सा बन चुका है. खानपान वायु पानी इत्यादि सभी कुछ प्रदूषित हो चुका है. जिससे प्रभावित आम आदमी की सेहत गिरती जा रही है. हर चीज मिलावटी है. आदमी के लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि वह क्या खाए और क्या ना खाएं. हर एक चीज का औद्योगिकरण होने के बावजूद कोई भी चीज बाजारों में सही उपलब्ध नहीं है. कहने को आज हम डिजिटल इंडिया बनने की ओर अग्रसर है तथा विज्ञान भी तरक्की की चरम सीमा पर है फिर भी देश की आवाम पीड़ित नजर आती है, आखिर इसका क्या कारण है?
पिछले कई सालों से एक समय पर प्याज की कीमतें आसमान को छू लेती है. कारण कोई भी हो मगर प्याज एक ऐसी चीज है जो आदमी की जरूरत है क्योंकि यह कच्चा खाने के साथ तथा हर सब्जी को बनाने में उपयोग किया जाता है. एक मजदूर प्याज के साथ ही रोटी खाकर पेट भर लेता है मगर प्याज ही ₹100 किलो हो जाए तो कोई मजदूर कैसे अपना पेट भरेगा? यूं तो ना सिर्फ प्याज बल्कि टमाटर मटर लहसुन आदि सब्जियां तथा फल सभी कुछ अत्याधिक महंगे मूल्य पर बाजार में उपलब्ध है. क्या यह चिंता का विषय नहीं की भारत जोकि एक कृषि प्रधान देश है उस देश की आवाम को ना तो खाने की अच्छी साफ चीजें उपलब्ध है और ना ही उनके अत्यधिक बढ़ते मूल्य पर कोई रोक.
किसी भी देश को विकसित तभी माना जा सकता है जब उस देश की जनता /आवाम की मूलभूत जरूरतें पूरी हो सके तथा हर व्यक्ति अच्छा जीवन निर्वाह कर सके. इस तरह की सोच रखना की जनता /आवाम पिज़्ज़ा बर्गर खा सकती है तो प्याज और सब्जियों के बढ़ते मूल्य से प्रभावित क्यों होती है कतई न्याय संगत नहीं क्योंकि यह सब चीज आम आदमी की मूलभूत जरूरत नहीं बल्कि लग्जरी है. सरकार का दायित्व बनता है की वह जनता /आवाम की मूलभूत जरूरते पूरी करें और देश को प्रगतिशील बनाएं. दूसरी ओर देश के हर एक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझें तथा मिलावट भ्रष्टाचार आदि को बढ़ावा ना दें.