सृष्टि में मानव की संरचना इस प्रकार की गई है की नर और मादा एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। शारीरिक संरचना के आधार पर लिंगभेद किया जाता है। इस रचना के आधार पर मर्द को शारीरिक तौर पर मजबूत बनाया है और औरत को कोमल तथा शारीरिक उतार-चढ़ाव दे करआकर्षक। एक के पास जीवन के सृजन के लिए बीज बोने की ताकत है दूसरे के पास उसे सजोने और सृजन की। भारतीय संस्कृति में यूं तो धार्मिकता के आधार पर नारी को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है जहां उसे देवी के रूप में पूजा जाता है मगर दूसरी ओर यह संस्कृति सदैव से पुरुष प्रधान रही है।
भारत में बलात्कार की बढ़ती हुई घटनाओं ने पूरे समाज और देश को हिला कर रखा हुआ है। निर्भया ट्विंकल और अब हैदराबाद बलात्कार हत्याकांड। किसी से जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार कहलाता है। एक या एक से अधिक व्यक्तियों का इस तरह के गुनाह में शामिल होना सामूहिक बलात्कार कहलाता है। आखिर इस तरह के बढ़ते कुकर्म और अपराधों के पीछे क्या कारण है? जिस भारतीय संस्कृति की भारतवासी दुहाई देते हैं वह कहां खो जाती है?
बदलते समय और आधुनिकता की दौड़ में आज मानवता इंसानियत का हनन चुका है। यह कहना कतई गलत नहीं होगा की समाज के लोग दिशा भ्रमित हो चुके हैं। यदि हम अधिकांश बलात्कार अपराधों की गहराई में उतरे, तो पाते हैं कि अधिकतर ऐसे गुनाह करने वाले गरीब,बेरोजगार,तथा कुंठित मानसिकता के शिकार हैं या उनका अपना व्यक्तिगत जीवन ऐसी किसी घटनाओं से संबंधित रहा होता है। सामूहिक बलात्कार की घटना में कई बार व्यक्ति चाहे अनचाहे एक दूसरे के साथ में भी ऐसे गुनाहों में उतर जाता है। दूसरी ओर आज इंसानी जीवन का मूल्य खत्म होता नजर आ रहा है ,ना तो किसी को ईश्वर का खौफ है और ना ही अपने बनाए समाज तथा कानून व्यवस्था का। हर व्यक्ति सही या गलत तरीके से अपने रुतबे को साबित करने में लगा है। हर व्यक्ति चर्चा का विषय बना रहना चाहता है। यदि आज के संदर्भ में देखें तो वह कहावत सिद्ध होती है की “बदनाम होंगे तो क्या ,नाम तो होगा”। सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग का भी इसमें बहुत बड़ा हाथ है। आज प्रत्येक व्यक्ति कुछ भी गलत या सही बिना यह सोचे कि वह समाज हित में है या नहीं सोशल मीडिया विविधओं का सहारा ले चर्चा में आ जाता है। जिसने सामाजिक ढांचे को अत्याधिक नुकसान पहुंचाया है।
मानव खासकर पुरुष की यह प्रकृति है कि वह दिमाग का इस्तेमाल कर सभी चीजों पर अपना आधिपत्य दिखाना चाहता है। उसे हार मंजूर नहीं होती। पुरुष प्रधान समाज होने के कारण आदमी नारी पर आज भी अपना अधिपत्य समझता है जो नैतिकता तथा इंसानियत के विरुद्ध है।
समाज और देश को दिशा देने के लिए यह जरूरी है कि देश की सरकार जनता आवाम की मूलभूत जरूरतों को पूरा करें तथा उन्हें शिक्षित कर जागरूक रखें। साथ ही सख्त कानून व्यवस्था को लागू कर उसका उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों पर सख्त कारवाही करें। बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए हर गुनहगार को सजा-ए-मौत ही मिलनी चाहिए ऐसे व्यक्ति समाज और देश के नाम पर ना सिर्फ धब्बा है बल्कि समाज और देश को कुंठित करने वाले कीड़ों का काम करते हैं। हर व्यक्ति को बिना लिंग भेद के एक सामान्य जीवन जीने का अधिकार है।