अक्तूबर में हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में यहां की जनता ने अपने आप में एक अद्भुत जनादेश दिया है. इन चुनावों में जनता ने ना सिर्फ घमंडीओं का घमंड तोड़ा बल्कि भाजपा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. चुनाव से पहले 75 पार का नारा लगाने वाली भाजपा इस बार 40 पर ही सिमट कर रह गई है. 75 पार तो दूर भाजपा अपने बूते सरकार बनाने लायक भी नहीं रही है.
|| कर्मवीर कमल
पार्टी में इसका जो भी विश्लेषण होगा वह पार्टी की अंदरूनी बात हो सकती है, परंतु जनता ने भाजपा के काम उनके प्रचार के बीच अपने लिए क्या फायदेमंद होगा इसका विश्लेषण करके ही वोट दिया है. पिछले 5 साल के अपने काम के अंदाज से उत्साहित भाजपा को यकीन था कि वह इस बार 75 सीटें पाने में कामयाब हो जाएगी. परंतु चुनाव के बाद भाजपा का किया हुआ काम कहीं चुनाव के प्रचार में दिखाई नहीं दिया. पूरे चुनाव में केंद्र की राजनीति हावी नहीं. केंद्र के और भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज नेता, गृहमंत्री और यहाँ तक की प्रधानमंत्री ने भी प्रचार के दौरान रैलियां की. इन रैलियों में मनोहर सरकार के काम पर कम, देश के केंद्रीय मुद्दों को गिनाने में ज्यादा ध्यान दिया गया. हरियाणा क्योंकि ऐसा प्रदेश रहा है जहां से युवा सेना में सबसे अधिक भर्ती होते हैं इसी कारण भाजपा ने चुनाव में अनुच्छेद 370 और राष्ट्रीयता का मुद्दा सर्वोपरि रखा. हरियाणा की जनता को यह बताया गया की अनुच्छेद 370 का हटाना हरियाणा राज्य के लोगों के लिए कितना फायदेमंद है. यह फायदा भले ही सेना को ध्यान में रखकर बोला गया हो, परंतु हरियाणा की राजनीति और स्थानीय मुद्दों में यह कहीं पर भी जनता को उचित नहीं लगा।
इस बार के चुनाव परिणाम पूरे राज्य के अलावा भाजपा को चौंकाने वाले थे. जिस तरह भाजपा सिमटकर 40 सीटों तक रह गई उसे इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी. इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा को उसका और कॉन्फिडेंस ही लेकर डूबा. इसके अलावा कुछ अन्य तत्व भी रहे जो भाजपा की हार का कारण बनी. कम वोटिंग, टिकटों के बंटवारे में कमी, चुनाव से पहले अपने दावों को पेश करने का कुछ नेताओं का अंदाज, यह कुछ ऐसे factor हो सकते हैं जो भाजपा की हार का कारण बना हो.
क्या भाजपा ने सच में कुछ काम किया था?
यह एक ऐसा सवाल है जिसके बारे में चुनाव के बाद जनता के साथ-साथ पार्टी भी सोचने पर मजबूर हो जाती है. हालांकि जनता वोटिंग से पहले इन के कामों का आकलन करके ही वोट देती है. पिछली सरकार में कई विधायक और यहां तक कि मंत्रियों का भी टिकट इस बार कट गया था. कई विधायकों की सीटों में बदलाव किया गया था. जो संभवत यही दर्शाता है कि पार्टी की नजर में उन विधायकों ने काम नहीं किया, या उस क्षेत्र में मौजूदा विधायक की इमेज खराब हो चुकी है और इसी कारण उनका चुनावी क्षेत्र बदला गया. बात अगर भाजपा के शासन के दौरान काम की की जाए तो इसमें कोई शक नहीं कि इस दौरान सड़कों और फ्लाईओवर पर काफी काम हुआ है, विशेषकर दक्षिण हरियाणा के गुरुग्राम में. पर यह भी एक सच्चाई ही रही है कि भाजपा द्वारा बनाए गए अधिकतर प्रोजेक्टों में कोई ना कोई तकनीकी या क्वालिटी की कमी निकली ही है.
बात चाहे गुरुग्राम के हीरो होंडा फ्लाईओवर सिगनेचर टावर अंडरपास की क्वालिटी की हो या फिर ट्रांसपोर्ट विभाग में किलोमीटर स्कीम के तहत बसों को लगाने की हो. इन दोनों ही जगहों पर भ्रष्टाचार नजर आता है जिस पर विपक्ष ने भी सरकार को कटघरे में समय-समय पर क्या है. बिजली विभाग की एबी केबल का घोटाला हो या स्मार्ट ग्रिड व्यवस्था में 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने की बात होगी दोनों ही जगह सरकार वेल रही है.
स्मार्ट सिटी और आदर्श गांव रहे गायब
लोकसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा सरकार ने स्मार्ट सिटी और आदर्श गांव को डिवेलप करने की बात रखी थी वह विधानसभा चुनाव में गायब रही. सोशल मीडिया की बात करें तो आदर्श गांव को लेकर एक चर्चा जोरों पर रही की कितने गांव गोद से उतर कर चल पड़े हैं या अभी वह गोद में ही है. चाहे केंद्रीय मंत्री प्रचार में आए या मौजूदा विधायक या मंत्री कोई भी जनता को यह बता या समझा नहीं पाया कि कितने गांव हरियाणा में आदर्श गांव बन गए हैं या हरियाणा में कितने स्मार्ट सिटी बनाई गई है.
निर्दलीय विधायक बने संकटमोचक, जेजेपी के साथ मिलकर बनाई सरकार
किसी भी चुनाव में निर्दलीयों का अहम रोल रहता है. यह बात इस बार हरियाणा के चुनावी परिणाम के बाद फिर साबित हो गई है. सरकार बनाने के आंकड़ों से दूर होने पर बीजेपी को निर्दलीयों का साथ मिला. निर्दलीय विधायकों ने भाजपा को अपना समर्थन देने की घोषणा की. 10 सीटें जीतकर आने वाली नई पार्टी जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला ने अपने पत्ते खोलते हुए भाजपा को समर्थन देने का ऐलान किया. इसके साथ ही हरियाणा राज्य में भाजपा और जज्बा गठबंधन की सरकार बन गई.
जेजेपी चौटाला परिवार की दूसरी राजनीतिक पार्टी है इससे पहले चौटाला परिवार की मुख्य पार्टी इनेलो रही है. इस बार की मनोहर सरकार में जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बने हैं. दिवाली के बाद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने अपने पद की शपथ ली और राज्य में नई सरकार का गठन किया.
इस प्रकार हरियाणा में भाजपा की मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में यह दूसरी पारी होगी. दोनों पार्टियां चुनाव प्रचार में एक दूसरे पर वार करती रही है. दोनों के चुनावी वादे काफी हद तक अलग है. ऐसे में अपने घोषणापत्र को जमीन पर उतारना नई बनी पार्टी जेजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण और चुनोतीपूर्ण होगा.
इतिहास बनी इनेलो
जननायक के नाम से मशहूर ताऊ देवीलाल की पार्टी इनेलो अब हरियाणा में इतिहास बनती जा रही है. राज्य में लोकसभा की सभी 10 सीटें भाजपा के पास है. हाल ही में आए विधानसभा चुनावी नतीजों में इनेलो को सिर्फ एक सीट मिली है. इनेलो के परिवार की आपसी कलह के कारण पार्टी दो टुकड़ों में बट गई. पार्टी के कुछ लोग और घर के सदस्य दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी में चले गए तो कुछ इनेलो में ही रह गए. ऐसे में वोटों का बटना और कटना दोनों स्वाभाविक है. कभी अपने दम पर सरकार बनाकर हरियाणा में राज करने वाली इनेलो आज एक सीट को भी तरस गई है. पिछली बार यही इनेलो मुख्य विपक्षी पार्टी थी. पिछली बार चुनाव में इनेलो को 19 सीटें मिली थी. इस बार इनेलो के इनके पास से विपक्षी का तमगा भी चला गया. इन चुनावों में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस बनकर उभरी है.
अजय चौटाला ने दिया अपने पिता को जेजेपी में आने का न्योता
यह राजनीति है, कब क्या खेल दिखा दे कोई कह नहीं सकता. कभी अपने पिता की पार्टी इनेलो से निकाले गए डॉ अजय चौटाला ने अब अपने पिता को अपने बेटे की बनाई पार्टी में आने का न्योता दिया है. उन्होंने कहा है कि यदि उनके पिता जननायक जनता पार्टी में आते हैं तो उन्हें पार्टी पूरा मान सम्मान देगी.