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उन्नाव कांड: सत्ता तले कुचलता न्याय

उन्नाव बलात्कार कांड एक ऐसा केस है जो गत तीन वर्षों से सुर्खियों में है. इस केस का आरोप भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर है. यह दुष्कर्म 4 जून 2017 को एक नाबालिग 17 साल की लड़की के साथ किया गया. खबरों मे छपे तथ्यो के अनुसार, केस के दौरान 8 अप्रैल 2018 को पीड़िता के पिता को गैर कानूनी तौर पर बंदूक रखने के केस में बंद करा दिया गया. 9 अप्रेल को पीड़िता के पिता जेल में ही मर गए तथपश्चात केस 12 अप्रेल को सी बी आई के हाथ सौंप दिया गया. 7 जुलाई को सी बी आई ने विधायक कुलदीप सिंह के खिलाफ पिता की मृत्यु को लेकर पहली चार्ज शीट बनाई. 11 जूलाई को बलात्कार की चार्ज शीट तथा तीसरी चार्जशीट 13 जुलाई को पीड़िता के पिता पर गलत आरोप लगा कर उन्हे फसाने तथा बलात्कार के आरोप को लेकर जारी की गई. सवाल ये उठता है की आखिर ऐसी कौन सी बात है जो सभी तथ्यों के बाद भी पीड़िता को आज तक इंसाफ नही मिल सका? बल्कि नौबत यहां तक आ गई है कि आज पीड़िता राय बरेली 28 जुलाई 2019 की दुर्घटना के बाद लखनऊ ट्रामा सेंटर में ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है. जिसमें पिड़िता की चाची, मासी की मृत्‍यु हो गई. क्या ये कमजोर लाचार कानून व्यवस्था का प्रमाण नही? देश को चलाने वाली सरकार अब तक क्यों खामोश बैठी? आखिर हर मुद्दे पर राजनीति का खेल क्यों खेला जाता है? ऐसा क्यो होता है कि न्याय मिलते मिलते तक कई लोग बलि चढ़ा दिए जाते है, यहां तक की न्याय की गुहार लगाने वाला व्यक्ति ही ख्त्म हो जाता है.

भारत देश जो डिजिटल बनने की ओर आग्रसर है आज भी संकीर्ण सोच, भ्रष्टाचार, धार्मिक तथा लिंग भेदभाव इत्यादि कुरितियों से घिर हुआ है. जिसका फायदा सता में आए राजनेता तथा उनसे जूड़े हुए लोग उठाते है. ये कैसी विडंबना है कि जनता के प्रतिनिधि ही जनता का सबसे अधिक शोषण करते है. अगर देश के प्रतिनिधि ही गलत आचरण और सोच के होंगे तो देश की आम जनता को सरंक्षण कौन देगा? भारतीय संविधान के मुताबिक प्रत्येक भारतीय को समानता का अधिकार प्राप्त है. जिसके तहत हर व्यक्ति कानून के समक्ष बराबर है, फिर चाहे वह कोई नेता हो या आम आदमी. यदि किसी भी देश की बागडोर ऐसे लोगो के हाथ में हो जो राजनैतिक ताकत का दुर्पयोग कर कानून से खेलते रहे तो वह देश कभी उन्नति नही कर सकता.

Photo Credit/NDTV

उन्नाव की ये घटना देशभर को हिलने के लिए कोई पहला केस नही है, ऐसे बहुत से केस समय समय पर सामने आते रहते है, जिनके चलते जनता का सरकार तथा कानून व्यवस्था से विश्वास खत्म होता जा रहा है. आखिर कब वो दिन आएगा जब हम अपने संविधान में लिखे हर लवज का सामान करते हुए उसे सही मायने में लागू करेंगे? राजनीति से गंदगी को खत्म करने के लिए सफाई पसंद लोगो को उतरना ही होगा क्योंकि आधुनिकीकरण के बावजूद भी गटर की सफाई के लिए आज भी जान जोखिम में डाल सफाई कर्मचारी को गटर में उतरना ही पड़ता है. वरना भ्रष्ट व्यवस्था की सड़न को मिटना मुमकिन नही. जनता को जागृत हो व्यवस्थ को पूरी ताकत से झंझोड़ना होगा.


केशी गुप्ता | लेखिका, समाज सेविका

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