राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने अरावली में खुदाई को जघन्य अपराध करार दिया है एनजीटी पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी सख्त है इसलिए प्रत्येक राज्य को दिशा-निर्देश भी जारी किए है।
प्रतीक वाघमारे
आसमान छूती, हज़ारों साल पुरानी, 692 किलोमिटर लंबी अरावली की श्रंखला पर अब खतरा मंडरा रहा है, यहां पर अवैध रूप से खुदाई को अंजाम दिया जा रहा है। पिछले हफ्ते ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने अरावली में खुदाई को जघन्य अपराध करार दिया है, एनजीटी पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी सख्त है इसलिए प्रत्येक राज्य को दिशा-निर्देश भी जारी किए है।
अरावली की श्रंखला दरअसल गुजरात से होते हुए राजस्थान और फिर दिल्ली, हरियाणा को छूती है यहां बहुत ही सुंदर घने जंगल है, 200 से ज़्यादा पक्षियों की प्रजातियां है और 400 से ज़्यादा देसी पेड़ों, झाड़ियों एवं जड़ी-बुटियों की भी प्रजातियां शामिल है।
क्यों चर्चा में है गुम होती ‘अरावली’?
अरावली में धड़ल्ले चल रहे खनन पर उच्चतम न्यायालय ने 2002 फिर 2004 और फिर 2009 में प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन फिर भी इतनी बड़ी श्रंखला में 12 जगहें रिक्त पाईं गई और 128 पहाड़ों में से 31 पहाड़ आज की तारीख में गायब हो गए लगभग 25% पहाड़ कहीं गुम हो गए। यह उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट में पाया गया है। यहां तक की उच्चतम न्यायालय ने ये तक कह दिया है कि क्या लोग ‘हनुमान’ बनकर इतने पहाड़ों को उड़ा ले गए है।
इन पहाड़ों का धीरे-धीरे नष्ट होना प्रकृति की गतिविधियों को प्रभावित करना है और प्रकृति की गतिविधियां प्रभावित होने का अर्थ केवल विनाश ही है। अब ज़ाहिर सी बात है इन पहाड़ों को न तो कोई ज़मीन निगल सकती और न ही आसमान उड़ा ले जा सकता है। इस जघन्य अपराध में सौ फीसदी इंसानों की ही भागीदारी है।
गुम होती अरावली की ‘महत्ता’
प्रकृति का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है और पहाड़ प्रकृति का अहम हिस्सा है, अरावली पर्वतमाला की अपनी महत्ता है। यह श्रंखला हज़ारों से भी ज़्यादा पेड़-पौधों और पक्षियों को संरक्षण देती है। इनसें निकली कई नदियां भी इस श्रंखला का हिस्सा है।
यह पर्वतमाला लंबे अंतराल के लिए परिस्थितिकी सुरक्षा यानी की इकोलोजिकल सिक्यॉरिटी प्रदान करती है। प्रकृति में जीव-जंतु, पेड़-पौधे के आपसी संबंधों को बरकरार रखना परिस्थितिकी संतुलन कहलाता है और इस प्रणाली में दख़ल होने पर यह बाढ़, सूखा और आदी तनाव पकृति में पैदा करता है।
गुजरात से लेकर हरियाणा तक फैली अरावली की श्रंखला राजस्थान में रेगिस्तान के हिस्से को गैर-रेगिस्तानी हिस्से से अलग करती है ताकी रेगिस्तानी हिस्सा दूसरी जगह न फैलें।
अरावली के घने जंगलों को ग्रीन लंग्ज़ भी कहा जाता है यह फेफ़ड़ों के रूप में गुड़गांव, फरीदाबाद और आस-पास के शहरों की हवा को शुद्ध रखने में मदद करता है। साथ ही यह श्रंखला भूजल के स्तर और भूजल पुनर्भरण यानी ग्राउंड वॉटर और ग्राउंड वॉटर रिचार्च में सहायता देती है वही मॉनसून भी इस श्रंखला के कारण ज्यादा समय तक टिकता है।
कुल मिलाकर यह ऊंचे पर्वत रेगिस्तान से उड़ कर आने वाली धूल को रोकते है जो की शहरों की शुद्ध हवा के लिए बेहद ज़रूरी है।
आखिर क्यों गुम हो रहा है ये पर्वत?
वैसे तो इन पर्वतों के गायब होने के पीछे कई कारण है लेकिन मुख्य रूप से खनन इसका कारण बना हुआ है। एक और बात साफ है कि सरकार अवैध खनन रोकने में असफल हुई है इसलिए ये पर्वत तेजी से नष्ट होते जा रहे है। यहां तक की हरियाणा सरकार ने अपने नए विधेयक में 1000 एकड़ वन भूमि क्षेत्र को गैर-वानिकी और रियल एस्टेट की गतिविधियों के लिए खोल दिया है। हरियाणा देश में सबसे कम वन क्षेत्र वाले राज्यों में से एक है फिर भी वहां की सरकार यह दलील देती है कि विकास कार्य के लिए ऐसे बदलाव ज़रूरी है जो की बेहद ही शर्मनाक है।
इसके अलावा हरियाणा सरकार ने अब तक अरावली श्रंखला को अधिसूचित वन क्षेत्र घोषित नहीं किया है जिसके परिणाम स्वरूप वहां अवैध खनन को बढ़ावा मिल रहा है।
गुजरात, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा की उच्च अदालतों में 4200 से ज़्यादा मुकदमें लंबित है, पर्यावरणविद् और कई सामाजिक कार्यकर्ता पूरी चिंता से इस श्रंखला के बचाव में अदालतों में लड़ाई लड़ रहे है और साथ ही अदालतों के अधिकतम फैसले भी इन पर्वतों के हित में ही आते है लेकिन ज़रूरत है उन फैसलों को सख्ती से बाध्य करने की। एनजीटी कई दिशा-निर्देश और जुर्माने लगाता है लेकिन क्या वह सख्ती सै लागू होते है?
अरावली पर खनन और अलग-अलग तरीकों से हमला होना, 31 पर्वतों का गायब हो जाना परिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ देता है और इस वजह से तीस दशक पहले जो बारिश का मोसम यहां 101 दिन तक रहता था वो अब महज़ 25 दिन का रह गया है। यह वन्य जीवन प्रणाली को प्रभावित करता है, दिल्ली जैसे अन्य शहरों में पीने के पानी की समस्या को जन्म देता है, प्रदूषण को आमंत्रित करता है, नदियों को प्रभावित करता है और भूकंप के झटकों की खबरें तो आप आए दिन सुनते ही रहते है।
राम मंदिर को लेकर जैसे आप संवेदनशील है, आपकी भवनाएं उससे जुड़ी है वैसे ही आपको अरावली से भवुक रूप से जुड़ना होगा यहां तक की मीडिया को भी नहीं तो निर्माण और विनाश अरावली को कंकड़ों में कब बदल देगा हमें पता भी नहीं चलेगा। अब पर्यावरण के प्रति संदेशों को उन ड्रॉइंग के पोस्टर्स से बाहर निकाल कर अमल में लाना होगा