देश की राजधानी में हेल्थ इमरजेंसी लगा दी गई है. पिछले कई सालों की तरह इस साल भी हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो चुकी है. विकास के साथ-साथ गरीबी , भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ देश की हवा भी खराब हो चली है. देश की राजधानी की हवा सांस लेने लायक नहीं रही है. बड़े बड़े वादे करने वाली सरकार स्मार्ट सिटी आदर्श गांव सब पर बहस करके सत्ता हासिल करने वाली सरकार. हम लोगों को साफ हवा तक नहीं दे पा रही है.
|| कर्मवीर कमल
अब तक देश इंदिरा गांधी के टाइम की इमरजेंसी को ही जानता था, पर अब देशवासियों ने हेल्थ इमरजेंसी भी देख ली है. हवा की गुणवत्ता आज पहली बार इतनी खराब नहीं हुई है बल्कि यह अब हर साल का क्रम हो चला है. ना देश के नागरिक ना देश के नागरिकों द्वारा बनने वाली सरकार, कोई भी आज पर्यावरण के मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आ रहे. देश की राजधानी में बढ़ते पोलूशन को कभी हरियाणा की देन कहा जाता है तो कभी पंजाब की. खेतों में जलने वाली प्रणाली हम इंसान द्वारा ही जलाई जाती है. हर साल सरकार वादे और दावे करती हैं कि अगले साल से पराली नहीं जलाई जाएगी लेकिन ऐसा कुछ धरती पर उतरता नहीं दिखाई दिया. वाहनों से निकलने वाले धुएं की भी है जिनकी वजह से भी पोलूशन बहुत तेजी से बढ़ता है. बात अगर विकास की करें तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है. करोड़ों की जनसंख्या वाला राजधानी क्षेत्र अब इस लायक नहीं रह गया है कि वह और जनसंख्या का भार उठाएं, बावजूद इसके यहां पर मकान बनाने का क्रम सरकार द्वारा और प्राइवेट बिल्डरों द्वारा जारी है. दिवाली के बाद से ही एनसीआर में हवा खराब होती चली गई है. आकाश में बादलों की जगह पोलूशन दिखाई देता है. सर्दी का एहसास करने वाला दृश्य हकीकत में सर्दी का मौसम नहीं बल्कि पोलूशन है. हम अगर अपने घर की खिड़की से बाहर झांकने के बाद भी नहीं समझे तो शायद अब बहुत देर हो चली है. क्या हम कभी स्वच्छ हवा में सांस ले पाएंगे? अगर इमानदारी से इस सवाल का जवाब तलाशे तो इसका उत्तर ना में ही होगा. क्योंकि राजधानी क्षेत्र में जनसंख्या का दबाव जिस प्रकार बड़ा है उससे नहीं लगता कि आने वाले समय में कभी इस प्रदूषण की समस्या से निजात पाई जा सकती है. दिन प्रतिदिन बढ़ते वाहन, बिजली की कमी से चलते डीजल के जनरेटर, वेंटीलेटर पर लेटी सरकारी परिवहन व्यवस्था, कंक्रीट के बढ़ते जंगल आदि सब वह तत्व है जो हमें कभी स्वच्छ माहौल में सांस लेने नहीं देंगे.
इससे बढ़कर जो स्वच्छ हवा में बाधक है वह है राजनीतिक इच्छाशक्ति है जिसकी कमी के कारण सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक सख्त निर्णय नहीं ले पा रही है.
हरियाणा, पंजाब के साथ दिल्ली की जनता को इन तीनों राज्य की सरकार और प्रशासन से खेतो की पराली से बनने वाली बिजली पर सवाल उठाना चाहिये. पोल्यूशन के नाम पर एकत्रित करने वाली उन हजारो करोड़ की राशि का हिसाब मांगना चाहिये जो प्रदूषण फैलाने के बदले लोगो से लिए गए थे.