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Rules regulation… my foot

रिश्वत, जीने के लिए भी और मरने के बाद भी…
जीने के लिए सरकार को रिश्वत, मरने के बाद सरकार द्वारा रिश्वत.
|| कर्मवीर कमल

8 दिसंबर को दिल्ली के रानी झांसी रोड पर स्थित एक इमारत में आग लगने से 43 से ज्यादा लोग जलकर मर गए, तो 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए. जिस इलाके में आग लगी वहां रिहायशी इलाका होने के बावजूद व्यवसायिक गतिविधियां चल रही थी.

अब सवाल यह उठता है कि इस इमारत में जलकर मरे 43 लोगों की मौत का जिम्मेदार वास्तव में है कौन? क्या वह फैक्ट्री के मालिक जिसने गैरकानूनी रूप से फैक्टरी लगाई? या वह आग जिसमे लोग जलकर मर गए? या फिर वह सरकारी, भ्रष्टाचारी तंत्र जिसने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया और कुछ भ्रष्ट लोगो ने रिश्वत ले लेकर इस तरह की गतिविधियों को चलने दिया.

हमारे देश में नियम और कानून सिर्फ बनाने के लिए और तोड़ने के लिए ही बनाए जाते हैं. इन कानूनों का पालन व्यवहारिक तौर पर देखा नहीं जाता. सबसे मुश्किल तो तब होती है जब कानून और नियम का पालन कराने वाले लोग ही इन नियम कानून से लोगों को डरा कर अपनी जेबे भरने लगे.

इसमें कोई शक नहीं है कि गैरकानूनी रूप से इमारते बनाने और रिहायशी इलाकों में कमर्शियल गतिविधियां चलाने के लिए सीधे तौर पर भ्रष्ट प्रशासन ही जिम्मेदार है. सरकार यहां के नागरिकों को नागरिक ना समझकर वोट बैंक समझती है. तो प्रशासन इन लोगों को अपनी आय का माध्यम. देश की राजधानी हो या कोई दूसरे राज्य का कोई शहर. सभी जगह रेहायशी और व्यवसायिक गतिविधियों के लिए अलग-अलग नियम और कानून बनाए गए हैं. कोई भी मकान या फैक्ट्री इन नियम कायदे के अनुसार ही बनाई जा सकती है. परंतु देश के अन्य राज्यों के अलावा, राजधानी दिल्ली में भी ऐसे कई इलाके हैं जहां मकान के साथ-साथ कमर्शियल गतिविधियां भी गैरकानूनी रूप से चल रही है.

एक समय के बाद इस गैरकानूनी गतिविधियों का परिणाम इसी तरह लोगों की मौत या कोई अनहोनी ही होता है. सरकार द्वारा नियम कानून इसीलिए बनाए जाते हैं कि व्यवस्था बनी रहे. नियम कानून लोगों की सुरक्षा तो करता ही है साथ ही एक देश की जीवनशैली भी सुधारता है. इन्हीं सबके लिए मकान बनाने के लिए नियम, कंपनियों के लिए नियम और यहां तक की छोटी-छोटी फैक्ट्री के लिए भी नियम बनाए गए हैं. परंतु हमारे देश में नियमों का पालन करते कितने लोग हैं? इन नियम कानूनों की परवाह ना तो मकान मालिक या फैक्ट्रियों के मालिकों को होती है और ना ही उस प्रशासन को, जिसकी जिम्मेदारी इन नियमों का पालन करवाना है.

प्रशासनिक अधिकारी जानबूझकर इस तरह के नियमों की अवहेलना होती देखते हैं और कुछ नहीं करते. जिसका परिणाम इस तरह की आग या कोई दुर्घटना ही होता है. करोल बाग स्थित हनुमान जी की मूर्ति को लेकर मामला जब दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा था तब जांच में यही बात सामने आई थी कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह जगह पर सरकारी जमीन पर कब्जा किया गया और गैरकानूनी तरीके से मंदिर का और मूर्ति का निर्माण कराया गया. पिछले वर्ष दिल्ली में सीलिंग का मुद्दा काफी उठा. मुद्दा यही था कि रहने के लिए बनाए गए घरों पर लोगों ने व्यवसायिक गतिविधि आरंभ कर दी और खुद कहीं और रहने लगे. इसका कानूनी पहलू देखें तो रिहायशी इलाकों में व्यवसायिक गतिविधियां चलाने की परमिशन सरकार नहीं देती. बावजूद इसके इन रेजिडेंशियल कॉलोनियों में व्यवसायिक गतिविधियां फलती फूलती रही.

बात अगर रेजिडेंशियल कॉलोनियों की करें तो देश की राजधानी में सैकड़ों की संख्या में अवैध कॉलोनियां बनती चली गई. जिनका फायदा यह गैरकानूनी काम करने वालों को ही मिला. साथ ही फायदा उठाया संबंधित अथॉरिटी ने. संबंधित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने अवैध कॉलोनियों को अपनी आंखों के सामने बनने दिया और इसमें कोई शक नहीं कि इसके लिए उन्हें रिश्वत भी दी गई होगी. यह बात जगजाहिर है कि दिल्ली पुलिस अवैध कालोनियों में लेंटर डालने के लिए रिश्वत लिया करते थे. डीडीए का भी ऐसा ही कुछ हाल रहा.

अवैध गतिविधियों के चलते हैं चाहे वह गतिविधियां है रिहायशी इलाकों में कमर्शियल एक्टिविटी के लिए हो, या फिर अवैध कॉलोनियां बसाने का मामला हो. दोनों ही सूरत में यहां के नागरिक परेशान होते हैं और सरकार को ना सिर्फ रेवेन्यू की हानि होती है बल्कि एक अव्यवस्था भी देश में पैर पसारती  है.

इन अवैध कॉलोनियों और व्यवसायिक गतिविधियों का खेल रिश्वत से शुरू होता है और रिश्वत पर ही खत्म हो जाता है. अवैध गतिविधियों को चलाने के लिए पहले सरकारी तंत्र इन लोगों से रिश्वत लेता है और इस तरह की गतिविधियों को चलने में पूरी सहायता और समर्थन देता है. बाद में कोई भी अनहोनी होने पर सरकार उन्हें रिश्वत देकर इस तरह के मामलों पर पर्दा डालने की कोशिश करती है. सरकार द्वारा दी गई रिश्वत मरने वाले और घायल व्यक्तियों को दी जाने वाली आर्थिक और कंपनसेशन होती है.

वह सभी काम जो एक सरकारी संस्था को करनी चाहिए थे उन्होंने नहीं किए. बदले में नागरिकों की जान जाती है. और सरकार ऐसे दोषी विभाग और अधिकारियों को दंड देने की स्थान पर मरने वाले और पीड़ित व्यक्तियों को हर्जाने के तौर पर रिश्वत देकर मुंह बंद कर देती है.

ऐसे में सवाल उठाना जायज है कि इस तरह की जो गैरकानूनी गतिविधियां सरकारी और प्रशासनिक व्यवस्था के आंख के नीचे चलती है उनके फलने फूलने पर ऐसे अधिकारियों को दंडित क्यों नहीं किया जाता. कब तक लोग प्रशासनिक लापरवाही के शिकार होकर अपनी जान दांव पर लगाते रहेंगे. वैसे दिल्ली के इस अग्निकांड के लिए सरकार द्वारा प्रत्येक मरने वाले को औसतन 1700000 रुपए की रिश्वत दी गई है.

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