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विश्व की सामूहिक गलती की वजह से फैला वायरस, फिर उंगली केवल एक समुदाय पर कैसे?

एक तरफ दूरदर्शन पर रात 9 बजे ‘रामायण’ प्रेम, करूणा और भाईचारे की भाषा का उपयोग करती है जबकि इसमें कैकयी और मंथरा जैसे पात्र भी हैं. वहीं दूसरी तरफ रात 9 बजे मीडिया चैनलों पर एंकर महोदय ज़ोर-ज़ोर से चीखते-चिल्लाते नज़र आते है. इनके चिल्लाने की वजह तबलीग़ी जमात है. यह मुस्लिम समुदाय का वो समूह है जो अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करता है. इसका मरकज यानी मुख्य केंद्र दिल्ली के निजामुद्दीन है. समस्या ये है कि मरकज में मौजूद लोग संक्रमित पाए गए है. यह संक्रमित लोग भारत के लगभग हर राज्य में जा पहुंच चुके है. इसकी वजह से कई और लोगों पर संक्रमित होने का खतरा बड़ गया है.
|| प्रतीक वाघमारे

भारत में कोरोना वायरस से अब तक 4 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं और 109 लोगों की मौत हो चुकी हैं. देश में संक्रमित हुए लोगों में से 30 फीसदी वो लोग हैं जो तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. इसमें कोई दो राय नहीं है कि तबलीग़ी जमात से इस पूरे प्रकरण में बहुत बड़ी गलती हुई है. लोकिन पूरे समुदाय को ही दोष दे देना और उनके खिलाफ नफरत की भाषा का उपयोग करना कितना सही है? सही माइने में कोरोना के फैलने का आरोप तो पूरे विश्व के अलग-अलग देशों की सरकारों पर लगना चाहिए. यह एक सामूहिक गलती लगती है.

वो ऐसे कि चीन इस वैश्विक महामारी के प्रति शुरुआत से ही पारदर्शी नज़र नहीं आ रहा है. आज भी चीन पर आकड़ों को छिपाने के आरोप लग रहे हैं. भारतीय मूल की अमरीकी नेता निक्की हेली ने भी चीन के आंकड़ों पर संदेह जताया है और अमरीका की इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए ने भी व्हाइट हाउस को चीन के आंकड़ों पर भरोसा न करने की सलाह दी है. अमरीकी पत्रिका ‘नेशनल रिव्यु’ के अनुसार चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को इस अंजान रोग का पहला मामला सामने आने के 3 हफ्ते बाद सूचित किया था. इसके बाद 8 जनवरी को चीन की मेडिकल अथोरिटी ने बताया था कि उनके पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि यह रोग मानव से मानव में फैलता है. इस बात की पुष्टी डब्ल्यूएचओ ने भी की थी. वहीं 23 जनवरी को चीन इस वायरस की जन्मस्थली वुहान शहर में पूर्णबंदी लागू कर देता है जिसके बाद कुछ 50 लाख लोग बिना जांच करवाए शहर छोड़ देते हैं. 24 से 30 जनवरी पूरे चीन में लूनर न्यू ईयर की छुट्टियां लग जाती है और पूरे देश में बड़े स्तर पर जश्न भी मनाया जाता है.   1 फरवरी को डॉ ली (अंजान रोग से ग्रसित व्यक्ति की जांच करने वाले) में इस रोग के संक्रमण पाए जाते है जिसके 6 दिन बाद उनकी मौत हो जाती हैं. चीन जैसा बड़ा देश भी इस रोग को समझने में वक्त लगा देता है और दुनिया को सचेत करने में और भी देरी कर देता है.

चीन ही नहीं बल्कि अमरीका जैसा शक्तिशाली देश भी इस वायरस के प्रति कितना कम गंभीर रहा यह भी जान लेना चाहिए. 21 जनवरी को अमरीका में कोरोना का पहला मामला सामने आता है. डब्ल्यूएचओ ने 30 जनवरी को स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया था. इसके बावजूद ट्रंप के कई ऐसे बयान आने शुरु हुए जो बेबुनियाद साबित हुए. ट्रंप ने अमरीका के टेलिविज़न न्यज़ चैनल फॉक्स को दिए हुए इंटरव्यू में कहा कि चीन से आने वालों पर पाबंदी लगाई गई है जबकि ऐसा कोई कदम ट्रंप सरकार ने नहीं उठाया था. 10 फरवरी को उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अप्रैल में जैसे ही गर्मी होगी इस वायरस का असर कम हो जाएगा जबकि इस बात को वैज्ञानिकों ने नकार दिया. 25 फरवरी को वो कहते है कि हम इस वायरस का इलाज खोज लेंगे जबकि शोधकर्ताओं ने बताया कि इलाज खोजने में एक साल से भी ज़्यादा का वक्त लग सकता है. ऐसे कई सारे ट्रंप के बयान आते रहे जिनका पर्दाफाश वहां का मीडिया करता रहा है. अमरीका में 8 हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और संक्रमित लोगों का सबसे बड़ा आंकड़ा भी इसी देश में है.

यह तो हुई दो बड़े देशो की बात. लेकिन जो पूरी दुनिया किसी भी महामारी से निपटने के लिए जिस संगठन की ओर देखती है वो विश्व स्वास्थ्य संगठन है. डब्ल्यूएचओ ने चीन में पहला मामला सामने आने के 2 महीने बाद जांच कर बताया कि यह वायरस वुहान में मानव से मानव के बीच फैल रहा है. 11 फरवरी को शुरुआती स्तर पर ‘टेस्ट’ करने की सलाह दी. 29 फरवरी तक अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया. मार्च में आ कर डब्ल्यूएचओ बताता है कि ‘टेंप्रेचर स्क्रिनिंग’ प्रभावी नहीं है जबकि 4 मार्च से भारत में जो जांच हो रही थी वो ‘टेंप्रेचर स्क्रिनिंग’ ही थी. 11 मार्च को जाकर  डब्ल्यूएचओ ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया. डब्ल्यूएचओ जैसा विशाल संगठन भी इस महामारी पर ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाया.

जब डब्ल्यूएचओ ने इस महामारी को समझने में इतना समय लगा दिया तो भारत जैसा विकासशील देश क्या इंतजाम कर सकता था? भारत तो स्वास्थ्य मामले में अपनी जीडीपी का ज़्यादा हिस्सा खर्च भी नहीं करता. पिछले साल ‘ग्लोबल हेल्थ स्क्योरिटी’ ने ‘ग्लोबल पब्लिक हेल्थ वॉच’ नाम से अध्ययन किया था जिसमें भारत को 46.5 फीसदी अंक प्रप्त हुए थे. कुल मिलाकर बात यह है कि भारत किसी भी महामारी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है. स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव लव अग्रवाल ने 13 मार्च को बताया कि भारत में स्वास्थ्य आपातकाल जैसे कोई हालात नहीं है.

अब अगर तबलीग़ी जमात की बात करे तो बेशक इस जमात के आयोजकों से बड़े स्तर पर गलती हुई है. यहां तक की इन लोगों ने मरकज में ठहरे लोगों का आंकड़ा भी दिल्ली पुलिस को कम करके बताया है. लेकिन इनकी लापरवाही के साथ सरकारी तंत्र की गलती पर भी बात होनी चाहिए. दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से पूछा जाना चाहिए कि इस महामारी के बीच इतने बड़े कार्यक्रम करने की इजाजत क्यों दी गई? इंडोनेशिया में होने वाले इस कार्यक्रम को वहां की सरकार ने इजाजत नहीं दी थी. यहां तक की महाराष्ट्र सरकार ने भी तबलीग़ी जमात को आयोजन करने की इजाजत नहीं दी थी. वहीं दिल्ली में 13 मार्च को पूर्णबंदी का एलान किया गया था. उस एलान में धार्मिक स्थलों के लिए कोई आदेश नहीं था. भारत के कई बड़े-बड़े मंदिर 19 मार्च तक खुले हुए थे. इसमें तिरूपति बालाजी मंदिर से लेकर शिर्डी का मंदिर सहित कई बड़े-बड़े मंदिर, गिरजा घर खुले थे. डिजिटल न्यूज़ वेबसाइट द वायर के अनुसार राम नवमी के दिन कोलकाता से लेकर शिर्डी तक ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का उल्लंघन कर अधिक संख्याओं में लोग आरती के लिए जमा हुए थे. इससे ये सवाल खड़ा होता है कि धार्मिक मामलों में भारत सख्ती से काम क्यों नहीं कर पाता?

तबलीग़ी जमात से लापरवाही हुई है बल्कि उन्होंने अपराध किया है और इस बात की जांच होनी चाहिए और सज़ा भी तय की जानी चाहिए. लेकिन मीडिया का पूरे समुदाय पर आरोप लगाना और कई ऐसे शब्दों का प्रयोग करना जो मुस्लिम समुदाय के लोगों को ठेस पहुंचा सकता, ये कहां तक जायज है? मीडिया ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया हैं उनका यहां ज़िक्र करना भी ठीक नहीं. केवल मुस्लिम समुदाय के एक समूह की गलती पर गरिया कर, पूरे समुादाय पर उंगली उठा कर दिहाड़ी मजदूर, किसान, घरेलु हिंसा और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर अपने-आप पर्दा ढक जाता है. जहां इन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए वहां पर नफरत फैलने लग जाती है. मीडिया की दहाड़ से ऐसा प्रतीत होने लगता है जैसे इस वायरस को मुस्लिम जानबूझ कर फैला रहे हैं. इस बीच सोशल मीडिया की फर्ज़ी खबरे और हैषटेग ने भी तड़का लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. मीडिया के इस गैर-ज़िम्मेदाराना हरकत से लोगों में नफरत का भाव पैदा होता है. इसके परिणाम स्वरूप दिल्ली से कुछ दूरी पर मुख्मेलपुर में कुछ असामाजिक तत्वों ने मस्जिद में घुसरक तोड़-फोड़ कर दी. मीडिया पर दो धड़ों में बंटने का आरोप लगना तो अब आम हो गया है लेकिन अब इस तरह की भाषा से लगता है कि क्या मीडिया सांप्रदायिक भी हो चुका है?

इस महामारी के लिए चीन से लेकर हर वो देश और व्यवस्था जिम्मेदार है जिसने इस रोग को गंभीरता से नहीं लिया. इसी लिए यह एक सामूहिक गलती है चीन की, डब्ल्यूएचओ की, भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था की और तबलीग़ी जमात के आयोजकों की.

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