हैदराबाद रेप एंड मर्डर केस. एक ऐसा मामला जिसने पूरे देश में कानून व्यवस्था और न्यायिक प्रणाली पर एक बहस छेड़ दी. जिस तरह से एक डॉक्टर की रेप के बाद जलाकर हत्या की गई, उससे राज्यों में सुरक्षा व्यवस्था पर तो उठे ही साथ ही इस दुर्घटना के बाद देश में रेप के मामलों में कोर्ट में हो रही देरी पर भी सवाल उठने लगे. साल 2012 का निर्भया मामला, इस मामले में दोषियों को अब तक सजा नहीं मिल पाई है. लोग अब सवाल उठाने लगे हैं कि न्याय व्यवस्था इतनी सुस्त क्यों है? सरकार और सुप्रीम कोर्ट कई बार फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से शीघ्र न्याय की बात करती है. पर किन मामलों में और कितने मामलों में कोई मामला फास्टट्रैक में जाएगा और कितने दिन में इस पर निर्णय हो जाएगा इस पर संशय बरकरार ही रहा है.
अब बात करते हैं वापस हैदराबाद मामले की. इस मामले में पीड़ित के पक्ष में जिस तरह पहले हैदराबाद फिर पूरा देश खड़ा हुआ उसके कारण सरकार पर शीघ्र कार्यवाही का दबाव पड़ा. पुलिस की व्यवस्था पर सवाल उठे तो पुलिस पर भी शीघ्र कार्यवाही का दबाव पड़ा. अचानक खबर आई की सुबह हैदराबाद रेप के दोषियों का एनकाउंटर कर दिया गया. इस एनकाउंटर ने हैदराबाद पुलिस की छवि एक हीरो के रूप में गढ़ दी थी. लोगों ने पुलिस का फूलों से स्वागत किया. तो वही कुछ संगठनों ने इसका विरोध भी किया. हुमन राइट ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग की. सोश्ल मीडिया में एनकाउंटर ट्रेंड करने लगा. आम जनमानस में धारणा बनती गई की जघन्य अपराध के दोषियों के लिए अब एनकाउंटर ही एकमात्र रास्ता बचा है. जिससे पीड़ित को तुरंत न्याय मिल सके. पर कानून के जानकार इस पर सवाल उठा रहे हैं. सवाल उठाना जायज भी है.
क्या इस तरह से दोषियों को एनकाउंटर में मार देना न्याय है? या न्याय की हत्या? इस सवाल का जवाब दो पक्षों में बटा हुआ है. एक पक्ष जो पीड़ित है और जो चाहता है कि उसे तुरंत न्याय मिले. इस पीड़ित पक्ष को आम जनता का साथ मिला और वह इस एनकाउंटर के पक्ष में खड़े हुए. न्याय व्यवस्था की लंबी प्रक्रिया से आहत आम नागरिक एनकाउंटर को सही ठहरा है. दूसरा पक्ष उस न्यायिक प्रक्रिया के साथ है जो देश का संविधान कहता है. उनका कहना है कि अगर एनकाउंटर ही एकमात्र समाधान है तो न्यायालय और न्यायिक प्रक्रिया की जरूरत ही क्या रह जाएगी? इस तरह तो राज्य एक पुलिस स्टेट बन कर रह जाएगा।
कानून का सिद्धान्त है की कई दोषी छूट जाये पर किसी निर्दोष को सज़ा नहीं होनी चाहिए। ये हमारे कानून की एक बेहतरीन व्यवस्था है। अगर पुलिस ने हैदराबाद कांड के दोषियों को पकड़ा था और उनके पास इसे साबित करने के पर्याप्त सबूत थे तो उन्हे ये कोर्ट मे साबित करना चाहिए था। यदि दोषियों को सजा देश का कानून कानूनी प्रक्रिया के तहत देता तो आमजन का कानून के प्रति विश्वास बढ़ता। हमारा देश संविधान और न्याय व्यवस्था से चलने वाला देश है। इस तरह का त्वरित और एक तरफा न्याय देश, जनता और न्यायिक प्रक्रिया सभी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
कन्नाबिरन हैदराबाद स्थित काउंसिल फ़ॉर सोशल डेवलपमेंट की निदेशक प्रोफेसर कल्पना के एक लेख के अनुसार चार निहत्थे अभियुक्तों को कड़ी सुरक्षा के बीच मारकर पुलिस ने क्या पा लिया? एक जान की कीमत और जान लेकर नहीं दी जा सकती.
ये किस्सा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के पूर्ण विपरीत है. अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं. और इस घटना में पुलिस की अपनी मनमानी, पहले से नियोजित प्रक्रिया और दंड ना पाने की गारंटी की नज़र से, यह पूरी तरह से गैरकानूनी घटना है.
अंत में इस डॉक्टर के रेप और मर्डर केस में हमें कितनी लाशें मिली? एक महिला की बर्बर तरीके से हत्या तो हुई ही, लेकिन चार अभियुक्तों को पकड़ा गया और एक हफ़्ते की कस्टडी में बिना किसी आपराधिक जांच के मारा गया. इन अभियुक्तों को घटनास्थल पर क्राइम रीक्रिएट करते वक़्त मारा गया – यानी कि जांच का वो चरण भी पूरा नहीं हो पाया.
क्या hi-profile लोगो को भी इसी तरह सज़ा दी जा सकती है?
हैदराबाद एंकाउंटर के बाद सोश्ल मीडिया पर इस पर बहस छिड़ गई है की क्या इसी तरह कुलदीप सेंगर, राम रहीम, आशा राम को भी जल्दी इसी अंदाज मे सज़ा दी जा सकती है। मैं इस सवाल को राजनीतिक ही कहूँगा। क्यूंकी किसी भी कानूनी कार्यवाही को पूरा करने के लिए राज्य की जरूरत पड़ती है और इसको पूरा करना राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। और इतिहास गवाह है की सत्ता की चाहत रखने वाली राजनीतिक पार्टियों ने इन सभी प्रकार के बाबाओ के चरण चूमे थे। ताकि वो इनके आशीर्वाद से जीत सके। ऐसे में इन तथाकथित बाबाओ की राजनीतिक शक्तियों का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। तो इस तरह का सवाल उठाने वाले सरकार और पॉलिटिकल पार्टी के विरुद्ध सिर्फ अपना गुस्सा ही जाहीर कर सकते है।
इसलिए भारत जैसे सभ्य और शान्तिप्रिय देश मे न्याय व्यवस्था का उच्च स्थान है। न्याय पालिका की इज्ज़त करना न सिर्फ आम नागरिक का कर्तव्य है बल्कि उन्हे भी कानून का पालन करना चाहिए जिन पर कानून बनाने और कानून का पालन कराने के ज़िम्मेदारी है। एक सभ्य देश मे पुलिस को इस तरह न्याय की हत्या करने की इजाजत किसी भी हालत मे नहीं दी जा सकती।