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धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के धर्म पाए जाते हैं जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, अलग-अलग धर्मों के अपने अलग-अलग रीति रिवाज और परंपराएं हैं। हर धर्म का अपना अलग इतिहास और पृष्ठभूमि है। सभी धर्मों के अपने त्यौहार भी अलग हैं जिन्हें वह अपनी धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं। ईश्वर ने सृष्टि मैं मानव को उच्च स्थान दिया मानवता ही मानव का सर्वोत्तम धर्म है मगर समय के बदलाव के साथ-साथ मानव ने कई सारे धर्म खड़े कर दिए जिसने समाज को विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया, जो कई रंगों की तरह लुभावना है तो दूसरी ओर समाज में फैली नफरत का प्रमुख कारण है।
कोई भी धर्म मानव को नफरत या अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता है मगर मानव मानवता को भूलकर अपने बनाए हुए धर्म रीति-रिवाजों परंपराओं त्योहारों का सही महत्व तथा यथार्थ भूल जाता है।

हर धर्म का व्यक्ति अपने धर्म को ऊंचा मान दूसरे के धर्म में कमी निकालने में लगा रहता है जबकि सभी धर्म त्योहार तथा परंपराएं मानव को बांधने और जोड़ने के लिए बनाई गई थी। त्यौहार चाहे दिवाली, ईद, गुरपूर्व, क्रिसमस हो मकसद लोगों को उत्साहित कर जोड़ने से होता है। यदि मानव त्योहारों रिवाजों परंपराओं की गहराई में उतरे तो पाएगा की हर चीज एक दूसरे से जुड़ी हुई है हर धर्म की उत्पत्ति के पीछे मानव कल्याण की भावना है।

सबसे बड़ी विडंबना इस राष्ट्र की यह है कि यहां पर धर्म की राजनीति प्रबल है। धर्म जाति को सीढ़ी बनाकर ही राजनेता वोट प्राप्त करते हैं। धार्मिक मुद्दों को छेड़ कर लोगों की भावनाओं से खेला जाता है और उन्हें मोहरा बनाकर इस्तेमाल किया जाता है। राम, रहीम, ईसा या नानक, महावीर सभी ने मानवता को ही श्रेष्ठ धर्म बताया है। ईश्वर ने जब हमें मानव जन्म दिया है तो हमारा यह धर्म बनता है की हम मानवता के धर्म का पालन करते हुए समाज और राष्ट्र के विकास की ओर अग्रसर हो। धर्मनिरपेक्षता का सम्मान करते हुए हर धर्म के रीति रिवाज परंपराओं और त्योहारों को मिलजुल कर मनाते हुए प्यार और अमन से रहे।

इबादत करने वालों को
फर्क कहां पड़ता है
जहां सजदा/सर झुका दो
वही खुदा/ईश्वर मिल जाए


केशी गुप्ता

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