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एक रोज़ा की दरकार पर्यावरण को भी

आज एक तरफ हम ईद की बधाई दे कर खुशियाँ बाँट रहे है तो वहीं दूसरी तरफ विश्व में पर्यावरण का संकट गहराता जा रहा है, जलवायु परिवर्तन बड़े खतरे की और इशारा कर रहा है लेकिन दुविधा यह है कि न तो सरकार इसे गंभीरता पूर्वक ले रही है, न तो हम ‘बिइंग ह्युमन’ इस पर कोई कार्रवाई कर रहे है, यहाँ तक की विश्वगुरु देश के दिग्गज भी इसे ‘होक्स’(मज़े में लेना) मानते है।

खैर, आप क्रिकेट विश्व कप का मज़ा लीजिए।

|| प्रतीक वागमारे

आज ईद के दिन रोज़े तो ख़त्म हो चुके है लेकिन पर्यावरण आपसे ज़िदगी भर के लिए रोज़ा रखने की माँग कर रहा है।

दरअसल, रोज़ा एक ख़ास समुदाय के लोगों द्वारा रखा जाता है जिसमें न तो आप कुछ खा सकते है और न ही कुछ पी सकते है और यह निर्धारित समय के लिए होता है, इतिहासकार राना साफवी अपने एक लेख में बताती है कि रोज़ा का संबंध महज़ पेट से नहीं है बल्कि इसका संबंध ज़बान से भी है की किसी को आप बुरा न कहे, शरीर से भी है कि आप किसी गलत काम में अपने आप को शामिल न करें आदी। रमज़ान का महीना वो महीना होता है जिसमें हम संयम रखना सीख सकें, अनुशासन सीख सकें, दान-पुण्य कर सकें, दूसरों पर हो रहे अत्याचार पर उनके लिए आवाज़ बन सकें, तरह-तरह के मोह से मुक्त हो सकें आदी। आज की इस ईद ने यह रोज़ा तो समाप्त कर दिया है लेकिन पर्यावरण हर एक शख़्स से उसके लिए रोज़ा रखने की माँग करता है।

इस बात का तात्पर्य यह है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमें अनुशासन रखना होगा, पेड़-पौधों को सूख जाने से बचाना होगा बल्कि पूरी धरती को संरक्षित करने के लिए हमें पानी, बिजली आदि का इस्तेमाल ध्यान पूर्वक करना होगा, प्लास्टिक को बाय-बाय कहना होगा, नदियों की अविरलता के लिए उसे दानव रूपी कारखानों से और कूड़े से बचाना होगा, हमें अवैध खनन रोकना होगा ऐसे हज़ार कॉमा लगा कर बाते लिखि जा सकती है लेकिन यह सब होगा कैसे?

आजकल हममें से कईयों की यह सोच बन चुकी है की हमें ऐसी कोई क्रांती नहीं लानी या फिर ‘हमारे करने से क्या होगा’ अगर हम यह सोच पाल कर रख लेंगे तो आप जलवायु परिवर्तन से हो रही जंग आधी हार चुके है, जब हम क्रांती की बात कर रहे तो आपको क्रांती की परिभाषा में एक बदलाव लाना होगा कि- स्वयं के कार्य करने से ही क्रांती आएगी तो बात बन सकती है, देखिए हमारे इस छोटे-छोटे कदमों से ही यह लंबा रास्ता तय हो सकता है।

अलग-अलग रिपोर्ट में बताया गया है कि साल में 12 लाख लोगों की मौत प्रदूषण के कारण हो रही है, हमारे जीवन जीने की आयु भी इससे घट रही है और छोटे बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन प्रदूषण ही है।

यू एन एन्वार्मेंट के द्वारा जारी किया गया नया विडियों काफी भावुक है विडियों में एक बुजुर्ग अपने से दो पीड़ी आगे के बच्चे को अपने ज़माने के बारे में बता रहा होता है जिस ज़माने में साफ हवा-पानी हुआ करते थे।

यू एन एन्वार्मेंट का यह विडियों हमें चेता रहा है और हमें उससे सबक और सीख दोनों लेनी ही चाहिए, क्या हम अपने आने वाली पीड़ी को ऑक्सीज़न का मास्क लगा कर यह बताएंगे की हमारे ज़माने में ख़राब हवा हुआ करती थी।

पता नहीं लेकिन यू एन को शायद प्रदूषण से बचने के लिए धमकी भरे विडियों भी बनाने पड़ सकते है। हम पर्यावरण से समझौता नहीं कर सकते क्योंकि जब पर्यावरण के हमारे साथ समझौता करने की बारी आती है तब वह बाढ़ या तो हाल ही में आए फोनी तुफ़ान के रूप में आती है।

अब बात उन पर आती है जो हमारे पैसों से सरकार चलाते है- सरकार का प्रदूषण को लेकर बड़ा ही ढ़ीला रवैया है, मौजूदा सरकार के लिए फिलहाल तो सबसे बड़ा प्रदूषण छोटा सा पाकिस्तान है क्योंकि पूरे चुनावी माहोल के दौरान मुद्दा पाकिस्तान रहा, हमारी सरकार प्रदूषण को कम करने के पीछे कब गंभीर होगी अल्लाह ही जाने!

फिलहाल के लिए तो आप भी पर्यावरण के लिए रोज़ा रख लीजिए जिसमें न आप पेड़ काट सकते है बल्कि आपको और नए पेड़ों को जीवन दान देना होगा, नदियों को साफ रखना होगा और पर्यावरण के प्रति कोटि-कोटि प्रेम रखना होगा।

और इस वर्लड एन्वार्मेंट डे को ‘हेप्पी’ वर्लड एन्वार्मेंट डे में परिवर्तित करना होगा।

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