बस वही ज़मीं चाहिए
ज़ज्बात की जुबां है गहरी तो होगी ही,
खातिर समझने को दिल में नमी चाहिए।
भाग रहे हैं आज कल मुगालते में लोग,
थम कर ढूंढ़ने को दो पल खुशी चाहिए।
ना ढूंढो तुम मौत को यूं ही दर ब दर,
मरने से पहले यारों जिंदगी चाहिए।
कोई बात नहीं दिल मे दर्द भी हो तो,
खातिर अपनों के लबों पर हंसी चाहिए।
जला लो चाहे तुम लाख दिए,
पर रात को सजाने को चांदनी चाहिए।
खल गई मेरे अपनों को मेरी मुस्कराहट,
उन्हें मेरी आँखों में नमी चाहिए।
मुहब्बत है कह देने से होता है क्या,
निभाने की चाहत दिल में होनी चाहिए।
खो गई है खुशियां हमसे न जाने कहां,
उसे मुझे ढूंढने को हमनशी चाहिए।
जिस जगह खुद से मुलाकात हो हमारी,
हमे तो बस वही ज़मीं चाहिए।
करुणा कलिका ,कवयित्री ग़ज़लगो व गीतकार
बोकारो स्टील सिटी -झारखंड,