कोरोना, कोविड 19 के संक्रमण के कारण 24 मार्च से 21 दिन का टोटल लॉक डाऊन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लागू किया गया है। कोविड 19 का संक्रमण घातक भी हो सकता है, इसलिए सामाजिक दूरी अर्थात सोशल डिस्टेंसिंग की बात शासन प्रशासन के द्वारा बार बार कही जा रही है।
|| लिमटी खरे
इसी बीच चिकित्सकों के ही कोरोना से पीड़ित होने की खबरें बहुत चिंताजनक मानी जा सकती है। दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक के चिकित्सक के कोरोना संक्रमित होने के कारण लगभग 900 लोगों को क्वारंटाईन करना पड़ा है। इसके बाद दिल्ली के एक अन्य अस्पताल के चिकित्सक के इसकी जद में आने की खबर भी चिंताजनक ही मानी जा सकती है।
चिकित्सक ही अगर सावधानी नहीं बरतेंगे तो बाकियों का क्या होगा। अनेक प्रदेशों में अस्पतालों का ब्हाय रोगी प्रभाग अर्थात ओपीडी बंद कर दी गई है। अनेक जिलों के प्रशासन के द्वारा निजि चिकित्सकों को उनके क्लीनिक्स अस्पताल खोलने की अनुमति दिए जाने की बात कही गई है।
चिकित्सकों की मानें तो इस तरह से तो अराजकता हावी हो जाएगी। सामान्य गैस का मरीज भी इमरजेंसी की आड़ में चिकित्सक की नाक में दम कर देगा। चिकित्सक चाहे सरकारी अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं या निजि अस्पतालों या अपने क्लीनिक्स में, उनके पास एन 95 या एन 97 स्तर के मास्क हैं! क्या उनके पास पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट अर्थात पीपीई पर्याप्त मात्रा में हैं!
जिन चिकित्सकों के पास मरीजों की भीड़ लगी रहती है वहां मरीजों के द्वारा अपनी बारी के इंतजार में आम दिनों में जिस तरह की अकुलाहट दिखाते हैं, वह समझा जा सकता है पर क्या इस तरह के आदेशों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित हो पाएगा!
आज यह पता करना बहुत ही मुश्किल है कि कौन सा चिकित्सक इस संक्रमण की जद में है, कौन सा नहीं! कम से कम चिकित्सकों को संक्रमण से बचाए रखने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है। छोटे शहरों के हाल तो ठीक हैं, पर बड़े शहरों में तो चिकित्सक अपने परिवार के लोगों से ही ठीक से नहीं मिल पा रहे हैं।
जब इस संक्रमण का पहला मरीज मिला था और उसके बाद कुछ मरीज मिलने आरंभ हुए थे, तब समझा जा सकता था कि उस संक्रमण के संबंध में किसी तरह के दिशा निर्देश जारी नहीं हुए थे, पर जब सरकारों के द्वारा इस संक्रमण से निपटने के लिए पर्याप्त दिशा निर्देश जारी कर दिए गए हैं तब इस तरह की लापरवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
मध्य प्रदेश के इंदौर में जिस तरह से चिकित्सकों पर पथराव हुआ वह निंदनीय है, इसकी निंदा करने से काम नहीं चलने वाला। इसके लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि लोगों के बीच फैली या फैल रही भ्रांतियों पर विराम लग सके। इसके लिए व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी पर संदेशों में पारदर्शिता लाने की जरूरत है।
इसके साथ ही यह भी जरूरी दिख रहा है कि चिकित्सकों की भी नियमित जांच हो, देखभाल हो। उन्हें पर्याप्त विश्राम मिल सके। अनेक चिकित्सक और पैरामेडिकल स्टॉफ कोरोना प्रभावित मरीजों की तीमारदारी में लगा हुआ है। इसके लिए उन्हें पर्याप्त सावधानियां, सुविधाएं दिए जाने की जरूरत है। अगर चिकित्सक ही संक्रमित हो गए तो बाकी मरीजों का क्या होगा!
आज इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही है कि चिकित्सकों और चिकित्सा काम में लगे कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाया जाए। कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में चिकित्सकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और वे ही एक रक्षक के मानिंद अटल खड़े दिख रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्यों के द्वारा जिस तरह से पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है उसके बाद भी अगर आप सांस ले पा रहे हैं तो उसमें कहीं न कहीं चिकित्सकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
इसके लिए आज इस बात की महती जरूरत है कि हम अपनी सुरक्षा खुद ही करें। शासन प्रशासन के द्वारा जो भी सावधानियां इस मुश्किल घड़ी में हमें बरतने की सलाह दी जा रही है उसका पालन सारी औपचारिकताओं को छोड़कर हमें करना ही होगा, तभी हम इस कोरोना कोविड 19 नामक राक्षस के प्रकोप से बच सकेंगे।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की आप सभी से अपील है कि आप घरों पर रहें, टोटल लॉक डाऊन का पूरा पालन करें। सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी का पालन करें। भीड़भाड़ वाले इलाकों में न जाएं। अगर आप बाहर जाते हैं तो वापस आते ही अपने हाथ सबसे पहले चुल्लू में पानी लेकर हाथ धोने की बजाए रनिंग वाटर में धोंऐं।
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)