आपने बहुत बार यह सुना होगा कि एक लड़की का जीवन तभी पूरा होता है जब वह मां बनती है। दुनिया की सबसे बड़ी खुशी उसके लिए यही होती है जब उसे पता चलता है कि वह एक नई जिंदगी को अपनी कोख से जन्म देने वाली है। लेकिन अगर उसी नन्ही सी जान को दुनिया में आने से पहले ही मार दिया जाए तो…
|| तरुण कुमार
एक गंभीर समस्या
हर साल 28 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का कारण यही है कि विश्वभर में अगर किसी भी महिला को गर्भपात कराना है तो वह केवल सुरक्षित तरीके से डॉक्टर की देखरेख और सलाह के बाद ही गर्भपात कराएं। लेकिन क्या गर्भपात इतना आसान है आखिर क्यों कोई भी लड़की गर्भपात का रास्ता चुनेगी आपके मन में भी यह सारे सवाल कौंद रहे होंगे।
असल में कोई भी लड़की नहीं चाहेगी कि उसका गर्भपात हो लेकिन कई बार वह ऐसी परिस्थिति में होती है जिसके कारण वह इतना बड़ा कदम उठाती है। कभी वह मानसिक तौर पर तैयार नहीं होती तो कभी वह शारीरिक रूप से। कभी-कभी तो मामले इतने संगीन होते हैं कि वह नहीं चाहती कि जिसे वह जन्म देने वाली है उसे उसके जैविक पिता का ना पता हो। रेप केस में यह बात बहुत आम होती जा रही है कुछ दरिंदे अपनी हवस को मिटाने के लिए मासूमों को अपना शिकार बनाते हैं और एक साथ कई जिंदगियों को बर्बाद करते हैं।
गर्भपात में सबसे आगे भारत
लैंसेट हेल्थ ग्लोबल मेडिकल जर्नल (Lancet Health Global medical journal) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 15.6 मिलियन गर्भपात होते हैं। सरकार के अनुसार 7 लाख गर्भपात होते हैं, इसमें प्राइवेट अस्पताल या फिर घर पर होने वाले गर्भापात को नहीं शामिल किया गया है। हर साल 1000 महिलाओं में से 47 महिलाएं गर्भपात कराती हैं। इन आंकड़ों के साथ भारत विश्व में सबसे ज्यादा गर्भपात करने वाले देशों की सूची में सबसे आगे हैं।
सेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 में देश में 1.56 करोड़ गर्भपात हुए। हैरानी वाली बात यह है कि अधिकतर महिलाओं ने डॉक्टरों से बिना सलाह लिए ही घर में दवा खाकर गर्भपात कर लिया। महिलाओं के साथ होती जोर जबरदस्ती इस बात का सबूत है कि 81 प्रतिशत महिलाएं घर में ही दवा खाकर गर्भ गिरा लेती हैं। केवल 14 प्रतिशत महिलाएं ही अपना गर्भपात स्वास्थ्य केंद्रों पर कराती हैं। आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं 5 फीसदी गर्भपात अस्पताल से बाहर असुरक्षित ढ़ंग से होते हैं.
राजधानी का हाल
राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां हर साल औसतन 50 हजार गर्भपात हुए हैं। इतना ही नहीं बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस दिल्ली में प्रसव के दौरान मां की मौत का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। नव भारत टाइम्स मे छपी जानकारी के मुताबिक दिल्ली में 2013-14 से 2017-18 के दौरान सरकारी और निजी स्वास्थ्य केन्द्रों पर 2,48,608 गर्भपात किए गए। इनमें सरकारी केन्द्रों पर 1,44,864 और निजी केन्द्रों पर 1,03,744 गर्भपात किए गए।
सपनों की नगरी में दम तोड़ती जिंदगी
देश में हालत किस कदर बद से बदतर होते जा रहे हैं इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सपनों की नगरी मुंबई में गर्भपात के मामलों में किशोर उम्र की लड़कियों में बहुत तेजी से बढ़ते हुए देखे गए हैं। जानकारी के अनुसार मुम्बई की 67% गर्भपात ऐसी लड़कियों के हुए हैं, जिनकी उम्र 15 साल से भी कम थी। चौंकाने वाली बात ये भी है कि वर्ष 2014-15 के दौरान 31 हजार महिलाओं ने गर्भपात का रास्ता चुना जिसमें 1600 लड़कियां ऐसी है जो नाबालिग हैं। मुंबई की महानगरपालिका (बीएमसी) के द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों के अनुसार 2013-14 में 11% ऐसी लड़कियों का गर्भपात हुआ था जिनकी उम्र 15 साल से कम थी।
विश्व स्तर के आंकड़े
भारत में जहां 15 से 49 साल की एक हजार महिलाओं में से 47 गर्भपात कराती हैं वहीं यह आंकड़ा पाकिस्तान में 50, नेपाल में 42 और बांग्लादेश में 39 है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में हर साल 5.6 करोड़ महिलाएं गर्भपात करातीं है, जिनमें से 45 फीसदी गर्भपात असुरक्षित होते है।
अमरीका के गुटमाकर विश्वविद्यालय के साथ मिलकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसके मुताबिक दुनिया के 97 फीसदी असुरक्षित गर्भपात एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीकी देशों में होते है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में 55 फीसदी गर्भपात सुरक्षित गर्भपात की श्रेणी में आते हैं।
क्या कहता है कानून
भारत में गर्भपात से जुडे कानून में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार गर्भपात कराने की समय-सीमा 12 हफ्ते है। गर्भधारण करने के 12 हफ्ते के अंदर महिला गर्भपात करवा सकती है। लेकिन अगर महिला को मानसिक और शारीरिक समस्या है तो इस स्थिति में या फिर भ्रूण में स्वास्थ्य समस्याएं या जटिलताएं आने भी गर्भपात कराया जा सकता है इसके लिए कानून में अलग प्रावधान किए गए हैं।
समस्या का समाधान
इस समस्या से जुड़ी मानसिकता को बदलने के लिए ना जाने कितने साल या फिर सदी लग जाए। लेकिन यह पूरी तरह से आपके ऊपर है कि इसे सदियों तक खींचना है या फिर आज से शूरु कर धीरे धीरे ही सही लेकिन इस गंभीर समस्या का समाधान किया जाए। शारीरिक मानसिक प्रताड़ना को झेलने वाली यह सभी महिलाएं किस कदर दर्द से गुजरती है इस बात का एहसास ना तो आप कर सकते हैं ना ही कोई और अब जरूरत है एक ठोस कदम उठाने की…