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शिक्षा बजट के लिए रोती सरकार

हाल ही में हरियाणा में भाजपा ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार का गठन किया है. मंत्रिमंडल बने अभी कुछ दिन भी नहीं हुए हैं. भाजपा सरकार ने अपने मंत्रियों के लिए एचआरए और अन्य भक्तों में भारी बढ़ोतरी कर दी. पिछले 5 वर्ष के दौरान भाजपा मंत्रियों और विधायकों के लिए उनके वेतन आदि में वृद्धि करती रही है.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर

इस समय जेएनयू के अलावा उत्तराखंड की आयुर्वेद विश्वविद्यालय के छात्र पिछले कई दिनों से फीस वृद्धि को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. जेएनयू जहां हॉस्टल मैं खाने और रहने में होने वाली कई गुना बढ़ोतरी को लेकर धरना कर रहा है, तो दूसरी और उत्तराखंड के आयुर्वेद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स बढ़ी हुई फीस वापस लेने के लिए पिछले कई दिनों से धरने पर हैं. छात्रों का आरोप है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी निजी कॉलेजों में फीस वापस इसलिए नहीं कर रहे है. क्योंकि कॉलेज सरकार के मंत्रियों या उनके रिश्तेदारों के हैं. कॉलेजों के अनुसार उन्होंने फीस वृद्धि सरकार के आदेश के बाद की है. उत्तराखंड के कॉलेजों ने अपनी फीस 80000 से बढ़ाकर 200000 से ज्यादा कर दी थी. छात्रों का कहना है कि यह फीस गलत तरीके से बढ़ाई गई है.

इस प्रकार फीस बढ़ोतरी के इस खेल में दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे हैं.

ऐसा ही कुछ जेएनयू में चल रहा है जेएनयू स्टूडेंट्स और जेएनयू प्रशासन में खींचातानी कोई नई बात नहीं रही है. जेएनयू की हॉस्टल फीस और मैच फीस में कई गुना वृद्धि की गई. सवाल यह उठता है कि सरकारें जिस तरह से अपने विधायकों और सांसदों के साथ मंत्रियों को इतनी सुविधाएं देती है तो क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं की एक अच्छी और मुफ्त शिक्षा की ओर वह कदम बढ़ाए. अक्सर विधायक और सांसद अपने वेतन वृद्धि आदि के लिए एकजुट हो जाते हैं. कोई जनहित में बिल हो या अन्य कोई बहस. सांसद हो या विधायक, कभी इस तरह एकजुट नजर नहीं आते. तो क्या अब भी हमें एक सस्ती और अच्छी शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाएगी?

आरोप लगते रहे हैं कि शिक्षा के व्यवसाय के केंद्र में यही विधायक, सांसद और मंत्री या उनके प्रभावशाली रिश्तेदार रहे हैं. इसी कारण से सरकार कभी भी सस्ती और अच्छी शिक्षा की ओर कदम नहीं बढ़ाती. हरियाणा सरकार बने कुछ ही दिन बीते कि उन्होंने अपने मंत्रियों को फायदा शुरू कर दिया.

एडीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा विधानसभा में अधिकतर सांसद करोड़पति है. अधिकतर लोगों के अपने व्यवसाय हैं सभी बिजनेसमैन है. तो क्या इन साधन संपन्न विधायकों को अलग से ऑफिस का खर्चा दिया जाना उचित है?

नवनिर्वाचित सरकार के मंत्रियों की पहली बैठक में ही इस तरह अपने लिए सुविधाओं मैं बढ़ोतरी करना सरकार की आने वाले समय में नीयत को दर्शाता है. शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूल समस्याओं पर सरकार 5 साल बीतने पर भी ध्यान नहीं देती. 5 साल बाद शिक्षा हो या बेहतर स्वास्थ्य इन सब को जगह अगले चुनाव के घोषणा पत्र में ही मिलती है. विधायकों को नैतिक आधार पर इस तरह की सुविधाओं का बहिष्कार करना चाहिए. चुनाव के वक्त यही नेता अपने आप को राष्ट्रभक्त, सामाजिक कार्यकर्ता और जनता का सेवक कहते है. यही समय है कि इन नेताओं को अपने अंदर की सच्ची राष्ट्रभक्ति को राष्ट्रहित में उजागर करना चाहिए. जनता के नेताओं को जनता से कैसा डर? क्यों जनता के यह नेता जीतने के बाद जनता के बीच जाना भी पसंद नहीं करते. चुनाव से पहले जिम आम लोगों के बीच यह नेता नंगे पैर घूमते हैं बाद में अपनी महंगी गाड़ियों में भी उन गलियों में क्यों नहीं जाते.

यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो उस समय सभी के जेहन में उठेंगे जब सड़कों पर छात्र लेते होंगे और राज्य सरकार की पुलिस उन पर डंडे बरसा रही होगी.


कर्मवीर कमल

 

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