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JNU: महंगी पढ़ाई, सस्ती पिटाई

मेरे लिए यह किसी झटके से कम नहीं था. जब मैं अपनी चौथी क्लास की बेटी की सर्दियों की स्कूल यूनिफार्म खरीदने गया. यूनिफॉर्म स्कूल से ही खरीदना मजबूरी है. मुझे बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 10 साल के बच्चे का लोअर और जैकेट जो सामान्य कैटेगरी का है की कीमत 1400 रुपए है. जबकि मार्केट में यही ड्रेस 600 to 700 तक बड़ी आसानी से मिल जाएगी. टीशर्ट का रेट 500 रुपए के करीब था. यह शिक्षा नहीं लेकिन शिक्षा के माध्यम से स्कूलों की कमाई का एक जरिया है.

कर्मवीर कमल

ख़ैर… अब चलते है जेएनयू की तरफ. हमें खुशी है कि हमारे देश में जेएनयू जैसा एक संस्थान है जो अच्छी और सस्ती शिक्षा के लिए विश्व विख्यात है. परंतु नवंबर का दूसरा सप्ताह जेएनयू के विद्यार्थियों के लिए अच्छा नहीं रहा. अपनी हक़ को लेकर आवाज़ उठाने के लिए मशहूर जेएनयू एक बार फिर चर्चा में रहा. पिछले दिनों जेएनयू में हॉस्टल आदि की फीस बढ़ोतरी के विरोध में स्टूडेंट्स ने प्रदर्शन किया. बदले में उन्हें पुलिस की पिटाई मिली. सरकार ने जेएनयू के स्टूडेंट के हॉस्टल खाने आदि का बिल में कई गुना वृद्धि की है. जिसका विद्यार्थी विरोध कर रहे थे. जेएनयू में अधिकतर छात्र गरीब वर्ग से आते हैं. जेएनयू में दाखिला प्रक्रिया इतना आसान नहीं है. बात शिक्षा के स्टैंडर्ड की करें तो जेएनयू की शिक्षा का स्टैंडर्ड अपने आप में बेहतरीन है. यहां के विद्यार्थी ना केवल अच्छी पोस्ट पर जाते हैं बल्कि मौजूदा समय में सरकार में मंत्री भी है. अब वापस चलते हैं एक प्राइवेट स्कूल के चौथी क्लास के बच्चे की यूनिफार्म पर. अगर एक प्राइवेट स्कूल की यूनिफॉर्म के चार्ज की जेएनयू की फीस से तुलना की जाए तो पता चलेगा की जितना एक प्राइवेट स्कूल का बच्चा 2 महीने के लिए यूनिफॉर्म पर खर्च करता है उस राशि में जेएनयू के विद्यार्थी अपनी साल भर की फीस दे सकते है।

किस बात पर है छात्रों को आपत्ति
  • यूनिवर्सिटी के नए नियमों के मुताबिक़ हॉस्टल फ़ीस में भारी भरकम बदलाव किया गया है. प्रशासन का कहना है कि पिछले 14 सालों से हॉस्टल के फ़ीस स्ट्रक्चर में बदलाव नहीं किया गया था.
  • पहले डबल सीटर कमरे का किराया 10 रुपये थी जिसे बढ़ा कर 300 रुपये प्रति माह किया गया. वहीं सिंगल सीटर कमरे का किराया 20 रुपये से बढ़ाकर 600 रुपये रखा गया है.
  • वन टाइम मेस सेक्टोरिटी फ़ीस 5500 रुपये से बढ़ा कर 12000 रुपये कर दिया गया है.
  • रात 11 बजे या अधिकतम 30 बजे के बाद छात्रों को अपने हॉस्टल के भीतर रहना होगा और बाहर नहीं निकल सकेंगे. अगर कोई अपने हॉस्टल के अलावा किसी अन्य हॉस्टल या कैंपस में पाया जाता है तो उसे हॉस्टल से निकाला जाएगा.
  • इसके अलावा नए मैनुअल में ये भी लिखा गया है कि लोगों को डाइनिंग हॉल में ”उचित कपड़े” पहन कर आना होगा. छात्रों का पूछना है कि ‘उचित कपड़े’ की परिभाषा क्या है. हालांकि विश्व विद्यालय प्रशासन का कहना है कि ये नियम पहले से जारी था. इसे केवल दोहराया गया है बदलाव नहीं किया गया.

छात्र संघ इस ड्रॉफ्ट को वापस लेने की मांग कर रहा है.

आखिर कुछ करदाता जेएनयू के खिलाफ क्यूँ है?

बीते कुछ दिनों से एक वर्ग द्वारा जेएनयू को बंद किए जाने की मांग जोर पकड़ रही है. सोशल मीडिया पर कुछ जेएनयू को जहां बंद करने की बात कर रहे हैं तो वहीं दूसरी और जेएनयू के स्टूडेंट्स उन्हें देशद्रोही लग रहे हैं. समाज का एक वर्ग नहीं चाहता कि जेएनयू में सस्ती शिक्षा किसी को मिले. उनकी नजर में जेएनयू में पढ़ने वाले विद्यार्थी हरामखोर है. उन्हें ऐसा लगता है कि जेएनयू संस्थान करदाता पर बोझ है. जनता के टैक्स का पैसा किसी गलत संस्थान में लग रहा है. सोशल मीडिया पर ऐसे कमेंट डाले जा रहे है कि जेएनयू के अंदर राष्ट्र विरोधी गतिविधियां होती है. राष्ट्र विरोधी नारे लगाए जाते हैं. इसलिए इन सबके चलते हैं जेएनयू आम लोगों के निशाने पर है.

वही कुछ ऐसे लोग भी है जो जेएनयू जैसे संस्थान ओर अधिक खोलने के पक्ष मे है। जिससे गरीब तबके के लोगो को उच्च और अच्छी शिक्षा मिल सके।

पूनम जेएनयू से पीएचडी कर रही है. वह बताती है कि उसके माता पिता गरीब है. उनकी इनकम इतनी नहीं है कि वह किसी अच्छे संस्थान में पढ़ाई कर सकें. पूनम जेएनयू से अपनी एम फ़िल पूरी कर चुकी है. वह खुश है कि उसे जेएनयू जैसा संस्थान मिला जहां वह और उसके जैसे गरीब घर के लोग अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं. पूनम का कहना है कि जो लोग यह सोचते हैं कि उनके टैक्स का पैसा जेएनयू जैसे संस्थान में बेकार लग रहा है यह उनकी गलतफहमी है. जेएनयू एक ऐसी संस्था है जहां गरीब इंसान भी पड़ सकता है. अगर मैं अपनी बात करूँ तो मेरे परिवार के पास इतना पैसा नहीं था की मैं आगे पढ़ाई कर सकु। अगर जेएनयू नहीं होता तो मैं M॰Fill नहीं कर पाती. आज के समय में जहां शिक्षा व्यवसाय हो चली है वहां जेएनयू जैसे संस्थान हम जैसे गरीब लोगो के लिए वरदान से कम नहीं है. पढ़ाई आज की तारीख में सिर्फ अमीरों के लिए ही रह गई है. हायर एजुकेशन की बात करें तो अच्छे संस्थानों में दाखिला सिर्फ पैसे वालों को ही मिलता है. ऐसे में जेएनयू हम गरीबों के लिए एक उम्मीद है.

विकास मुनिरका में रहते हैं. वह बताते हैं कि हमारे गांव में जेएनयू में के पढ़ने वाले काफी स्टूडेंट रहते हैं. हमारा बचपन से ही जेएनयू कैंपस में आना-जाना रहा है. जेएनयू के पढ़ने वाले अपने आप में एक बुद्धि वर्ग हैं. हमारे घर में कई ऐसे स्टूडेंट रहकर गए हैं जो जेएनयू से पीएचडी कर रही थे. जैसा कि इन स्टूडेंट के बारे में फैलाया जा रहा है यह ऐसे बिल्कुल भी नहीं है. यह अपनी पढ़ाई में हमेशा व्यस्त रहते हैं. आप ही बताइए जो इतनी दूर से पढ़ाई करने आता हूं क्या वह बेवजह कोई धरना प्रदर्शन करेगा? उनका पूरा परिवार उनकी शिक्षा पर निर्भर करता है यह ऐसी जगह से आए हैं जहां इनको बेसिक सुविधाएं भी नहीं मिलती बावजूद इसके में इतनी प्रतिभा है कि आज यह जेएनयू जैसे संस्थान में पढ़ रहे हैं.

ऐसा ही कुछ कहना कटवारिया सराय में साइबर कहां से चलाने वाले का भी है. उनके अनुसार उनके पास काफी जेएनयू के स्टूडेंट से आते हैं जो अपने जरूरी स्टडी के लिए यहां इंटरनेट का प्रयोग करते हैं. यह लोग अपनी पढ़ाई के प्रति पूरे समर्पित दिखाई देते हैं. इन स्टूडेंट्स में आपस में एकता है. यह लोग देश पर ही नहीं बल्कि विदेशों की नीतियों पर भी अध्ययन करते हैं. तो क्या कभी ऐसे स्टूडेंट्स देश विरोधी नारे लगा सकते हैं? मैं यह नहीं मानता. कुछ लोग जानबूझकर इन लोगों के खिलाफ और इस संस्थान के खिलाफ बद नियति से अभियान चला रहे हैं.

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