दिल्ली जो भारत की राजधानी है आज हर तरह से हिंसा और अराजकता का शिकार बनी हुई है। सोमवार से शुरू हुई हिंसात्मक घटनाओं आगजनी इत्यादि की खबरें चारों तरफ फैली हुई है ।
|| केशी गुप्ता
हर आदमी डर और दहशत की लपेट में है। सवाल यह उठता है की क्या यही विकास और देश की प्रगति के संकेत हैं? हंसता खेलता दिल्ली शहर दिन प्रतिदिन विनाश की तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा है। क्यों उठे हुए मुद्दों के ऊपर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है, जिससे जनता और आवाम आश्वस्त हो सके। क्या किसी समस्या का हल ढूंढना कार्यरत सरकार का दायित्व नहीं?
तथाकथित तथ्यों के आधार पर उत्तर पूर्वी दिल्ली में फैली हिंसा में अब तक 34 लोगों की मौत हो चुकी है। इस बात को किस तरह से नकारा जा सकता है? क्या आम आदमी की सुरक्षा का दायित्व कार्यरत सरकारों पर नहीं है? कब तलक भारतीय नागरिकता अधिनियम के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को नजरअंदाज किया जाएगा? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इस पर एक बार पुनः विचार विमर्श कर कुछ बेहतर तरीका निकाला जाए जो देश हित और समाज हित में हो।
जिस समय देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है उस समय में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को बुलाना कहां तक उचित है?क्या उनके स्वागत में की गई व्यवस्था पर हुआ खर्च देश को सुव्यवस्थित करने में लगाया जाना ज्यादा उचित नहीं था? क्या इस दौरे को स्थगित नहीं किया जा सकता था? ऐसे कई सारे सवाल देश की जनता और आवाम के दिलों मे गुस्से का कारण बने हुए हैं । जहां कार्यरत सरकार की जिम्मेवारी बनती है कि वह आवाम को सुरक्षा और प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त करें वहीं दूसरी ओर जनता और आवाम की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह देश हित में किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ावा ना दें। सार्वजनिक संपत्ति और जान माल की हानि का दुष्प्रभाव आम आदमी का ही नुकसान है ,इस बात को समझना बेहद आवश्यक है ।
पिछले कहीं समय से दिल्ली का युवा वर्ग ,औरतें और नागरिकता अधिनियम के विरोध में खड़े लोग तथा समर्थन में खड़े लोगों के बीच एक जंग का माहौल सा बन गया है जिस पर समय रहते विचार विमर्श करना बेहद जरूरी है अन्यथा दिलों में पैदा हुई नफरत धड़कती दिल्ली की सांसे छीन लेगी जो शायद फिर कभी दिल्ली को जीवित ना कर सके।