कला साहित्य

कविता: माँ और मैं

माँ और मैं

मेरे सर पे दुवाओं का घना साया है।
ख़ुदा जन्नत से धरती पे उतर आया है।।

फ़कीरी में मुझे पैदा किया, पाला भी।
अमीरी में लगा मुँह – पेट पे, ताला भी।।

रखा हूँ पाल, घर में शौक से कुत्ते, पर।
हुआ छोटा बहुत माँ के लिए, मेरा घर।।

छलकती आँख के आँसू, छुपा जाती है।
फटे आँचल में भरकर के, दुवा लाती है।।

अवध, माँ इश्क है, रूह है, करिश्माई है।
कहाँ कब लेखनी, माँ को समझ पायी है!


डॉ अवधेश कुमार अवध

Related posts

बस वही ज़मीं चाहिए

TAC Hindi

पुस्तक समीक्षा: नील कमल की कविता अर्थात कलकत्ता की रगों में दौड़ता बनारस

TAC Hindi

लवकुश रामलीला : अरविंद केजरीवाल एवं भूमि पेंडारकर ने किया रावण दहन

TAC Hindi

कविता : माँ

TAC Hindi

कविता: बहिष्कार… कोरोना वापिस जाओ

TAC Hindi

कहानी: पहचान

TAC Hindi

Leave a Comment